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________________ उपदेश गच्छ - परिचय | १०९. तीयों की यात्रा का बड़ा लाभ प्राप्त होगा | श्रावकों को आप के दर्शन और उपदेशामृत का पान मिलेगा । मेरी निजी सलाह तो I यही है कि आप को अवश्य सिन्ध प्रान्त की ओर विहार करना चाहिये | यह बात उन के जी में भा गई । सब आचार्य सिन्ध की ओर यात्रार्थ जाने को प्रस्तुत हुए । उन के कहने से अनेकानेक श्रावकगण भी यात्रा का लाभ लेने को प्रस्तुत हुए । शुभ मुहूर्त में आचार्य श्री कक्कसूरिजी की अध्यक्षता में सारा समुदाय रवाना हुआ | नगर के बाहर नदी के एक चौक में डेरा डाला गया । इस समय यात्रियों के स्पइवारों और तम्बुओं को देख कर ऐसा मालूम होता था मानों कोई राजा अपनी कटक सहित वहाँ आ ठहरा हो । इधर यह विशाल संघ सिन्ध जाने को तैयार था उधर पाटण नगर के बच्चे बच्चे के मुंह पर यह बात निकलने लगी कि ऐसा क्या कारण है कि ये सब के सब आचार्य आज यहाँ से विदाय हो रहे हैं। ठीक उसी समय महाराजा कुमारपाल प्रात:काल अपने बगीचे में जा रहा था । उसने इस जमघट के जनरव को सुन कर अपने अनुचरों से पूछा कि आज यहाँ कौन मंडलिक या है ? नौकरोंने जवाब दिया कि - अन्नदाताजी ! यह किसी मंडलिक का आना नही है यह तो सिवाय हेमचन्द्राचार्य के शेष आचायों का समुदाय है जो पाटण का परित्याग कर सिन्ध प्रान्त की ओर जानेवाला है । यह सुन कर कुमारपाल बहुत दुःखी हुआ | वह सोचने लगा कि मुझ से ऐसा कौनसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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