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उपकेशगच्छ-परिचय । प्रसिद्ध है कि “ तथ्यो अतथ्यो वा, महिमा हरन्ति जनरव " इस पर प्राचार्यश्रीने हेमवन्द्राचार्य के शिर पर हाथ रखा और उनकी यथार्थ प्रशंसा की । आपने कहा कि आप उच्च कोटि के विद्वान हो तथा योगशास्त्र जैसे महान ग्रंथ के रचयिता हो । यदि आप ' पढमं हवइ मंगलं ' के स्थान पर 'पढमं होई मंगलं' कर देते तो यह बात शास्त्र सम्मत होने के कारण आपका ग्रंथ सर्व गच्छवालों के उपयोग का हो जाता । हेमचन्द्रसूरिने उत्तर दिया कि इस में मुझे किसी भी प्रकार का एतराज नहीं है में ' हवई' की जगह ' होई' कर दूंगा । पाठकगण ! जरा देखिये कैसी सारल्यता खौर विवेक तथा विनय का दृश्य है। इस से सिद्ध होता है कि उस समय क्लेश कदाग्रह और हठपाहीपने का नाम निशान भी नहीं था। फिर क्या कहना था। दोनों प्राचार्य परस्पर धर्म-वार्ता प्रेमपूक करने लगे।
महाराजा कुमारपालने अपने अनुचरो को आदेश दिया कि स्वागत की तैयारियाँ करो । संघ तथा कुमारपाल नरेश की विनति स्वीकार कर सर्व प्राचार्य पाटण नगर में चलने को सहमत हुए । नगरप्रवेश का वह महोत्सव अवश्य दर्शनीय था मानो इन्द्रराज की सवारी चढ़ी हो । जय जय की घोष से
न वरं षट् छंदनानि तथा हवई मंगलं । समुद्धर योगशास्त्रद्यथ सर्वत्र पठ्यते ॥ ४६५ ॥ तयेत्यंगीत्यहेममूरयः कवसूरिभिः दर्शनेननथ संयुका राहत महोत्सवा ॥ ४ ॥
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