SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ उमरसिंह क्वेिचन चारित्रकारने किया है। इस प्रकार जिधर ये जाते थे, जैन धर्म की चढ़ती व बढ़ती कर आते थे । प्रसंग छिडने पर यहाँ जम्बूनाग का परिचय करा दिया गया है अब पुनः अपने मुख्य विषय पर श्शाते हैं। विक्रम की बारहवी शताब्दी की बात है कि प्राचार्य श्री ककसूरि, जो अनेकानेक लब्धियों और विद्याओं के धुरन्धर ज्ञाता थे, विहार करते हुए डीडवाने नगर में पधारे। वहाँ चोरडिया गोत्रिय भैंशाशाह नामक श्रावक रहते थे जो बड़े चढ़े धार्मिक और निर्धन थे । सत्य में आप की विशेष रति थी । आचार्यश्री के अनुग्रह से इन के यहाँ के उपले सुवर्णमय हो गये | इन्होंने * गदियाणा ' नामक सिक्का चलाया था, अत: इनकी शाखा 'गदइया' के नाम से प्रख्यात हुई। आपने डीडवाने में कई मन्दिर तथा एक कूत्रा और नगर को चहुँ ओर कोट बनाया जो आजपर्यन्त प्रसिद्ध है। राजकीय खटपट के कारण आप वहाँ से भीनमाल भाकर बस गये । इन्होंने देवगुप्तसूरि के पट्ट महोत्सव में सवालक्ष रुपये व्यय किये थे। इन की माताने श्रीशत्रुञ्जय गिरि का संघ निकाला । गुजरात के लोगोंने मेंशाशाह नाम की खिल्ली उडाई । तब भेशाशाहने तेल, घृत, और चांदी के सौदे में गुजरतीयों को नतमस्तक किये । इस विजय की यादमें दो १ सं. १३६३ का लिखा उपकेशगच्छ चरित्र देखिये । श्लोक ३१७ वें से ४.६ वे तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy