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________________ उपकेश पच्छ - परिचय | १०५ बाते करवाई गई - गुजरातीयों की एक लांग खुलवाई और मेंसे पर पानी लाद कर भगवाना बंध करवाया । तदन्तर इसी गच्छ में महान् प्रभाविक कक्कसूरि नामक श्वाचार्य हुए। इनका दूसरा नाम कुंकुदाचार्य भी थे। इन्होंने १२ वर्ष तक छट्ठ छट्ठ तपस्या के पश्चात पारणे पारणे आयंबिल किया | बड़े बड़े राजा महाराजा आपके चरणकमलों में उपस्थित रहते थे | आप राज्यगुरु कहलाते थे । आप के शासनकाल में सहस्रों साधु-साध्वियों तथा कोड़ों श्रावक विद्यमान थे । आपने अपने आत्मबलद्वारा अनेकानेक लोगों को त्यागी और जैनधर्मानुरागी बनाया | अतः एव आप की विद्वता का प्रभाव चहुंओर प्रसरा हुआ था । यह समय परिवर्तन का था । श्रमण-संघ में क्रिया की शिथिलता छा रही थी । प्रत्येक गच्छ में क्रिया के उद्धार की आवश्यक्ता अनिवार्य प्रतीत होती थी । और हुआ भी ऐसा ही । प्रायः इसी शताब्दी में गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ है । चाचार्य श्री | अपने गच्छ के क्रिया - शिथिल साधुओं को मृदु और मंजु उपदेश द्वारा पुनः उचित पथ पर ले आते थे अथवा यदि वह साधु उचित कर्त्तव्य का पालन न करता तो उसे गच्छ से बिलग कर देते थे । जो साधु इन की आज्ञानुसार क्रिया करते थे वे कुकुन्दाचार्य की संतान कहलाते थे । २ दखिये उपकेशगच्छ - पट्टावली ( जैन० सा. सं. पत्र में मुद्रित ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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