________________
उपकेशगच्छ-परिचय।
१०३ यशोदित्य की सहायता से पद्मप्रभने सिन्ध प्रान्त में पधार कर पंचनदपर जाकर त्रिपुरादेवी की आराधना की। देवीने संतुष्ट हो कर स्वयं प्रकट हो इन्हें वचनसिद्धि का वरदान दिया। भाग्यशालियों के लिये ऋद्धि, सिद्धि, देवी और देवता सब के सब हस्तामलक हैं । आपने इस वचनसिद्धि का सदुपयोग इस ढंग से किया कि जिस से जनता पर जिनधर्म का प्रभाव पड़ा
और उस की खूब वृद्धि भी हुई । ___ एक समय वाचनाचार्यजी पाटण पधारे । वहाँ की महारानी जैनधर्मावलम्बिनि थी । आध्यात्मिक ज्ञान में वह विशेष दक्ष थी । वर रानी अध्यात्मशून्य क्रिया करनेवालों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार नहीं करती थी । अर्थात् वह किसी दर्शनी में साधुपना ही नहीं मानती थी। जब इस बात का समाचार वाचनाचार्यजी को मिला तो वे उस के पास गये और वार्तालाप के अनन्तर अपने आध्यात्मिकज्ञान और अष्टाङ्गयोग के विषव ऐसे उत्तम ढब से प्रतिपादित किये कि रानी चकित हो गई। उस की मिथ्या भ्रमणा दूर हो गई। राणीने कुछ भेट करना चाहा जो उन्होंने यह आदेश दिया कि यह द्रव्य शुभ क्षेत्रों में व्यय किया जाना चाहिये।
उपाध्यायजी और वाचनाचार्यजी अपनी शिष्यमण्डली सहित वापस मरुभूमि की ओर पधारे । आप शास्त्रार्थ में इतने पारंगत थे कि अनेकानेक लोगों को पराजित कर जैनधर्म के प्रेमी और नेमी बनाये । इन के अनोखे और चोखे कार्यों कर विशद
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com