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उपकेशगम्छ-परिचय । कराया। आचार्य श्रीसिद्धसूरिने अन्यान्य प्रान्तों में विहार कर जैन-धर्म की असीम उन्नति की ।
कालान्तर इसी गच्छ में महान् चमत्कारी और दस पूर्वधारी आचार्य श्री यक्षदेवसूरि हुए जो आचार्य वज्रसूरि के सदृश कहलाये । श्राप दस पूर्वधारी तो थे ही परन्तु इसके अतिरिक्त पाप अनेक विद्याओं और लब्धियों से विभूषित थे । जिस समय उत्तर भारतवर्ष में भीषण दुष्काल पड़ा था मापने दक्षिण भारत में विहार किया था। पर्यटन करते हुए शाप एक कार सोपारपुर-पट्टन में पधारे । उस समय आचार्य श्रीवज्रसेनसूरि अपने नये शिष्यों को ज्ञानाभ्यास कराने को चन्द्रादि शिष्यों सहित प्राचार्य श्रीयक्षदेवसूरि के समक्ष आए और प्रार्थना करने लगे कि इन शिष्यों को शिक्षित करने का भार आप अपने पर लीजिये। परोपकारपरायण आचार्यश्रीने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और तदनुसार चन्द्रादि शिष्यों को परिश्रमपूर्वक पढ़ाने लगे। सच कहा है कि भवितव्यता भी बलवान होती है। इधर इन शिष्यों
१ तेषां श्रीककसूरीणं शिष्याः श्री सिद्ध सूरयः । वल्लभीनगरे जग्मुर्विहरतो महीतले ॥३॥ नृपस्तत्र शिलादित्यः सूरिभिः प्रतिबोधितः । श्रीशत्रुजय तीर्थेश उद्धारान् बिद, बहून ॥॥ प्रतिवर्ष पर्दूषणे स चतुर्मासीक त्रये । श्री शत्रुजय तीर्थे गत यात्रायै नपस्तम ॥५॥ ( वि. सं. १३९३ के लिखे उपके शगच्छ चरित्र से)
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