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________________ श्रेष्टिगोत्र और समरसिंह । पत्र लिख भेजा । सहजने उसे सादर स्वीकार किया। उसने देवगिरि नरेश से तुरन्त ही मन्दिर के लिये आवश्यक जमीन प्राप्त करली । इधर सहजपालने बहुत द्रव्य लगा कर देवभवन तुल्य भीमकाय मन्दिर चतुर शिल्पकारों द्वारा तैयार करवा लिया। उधर देशलशाहने आरासन का उत्तम पाषाण मंगवा कर मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान् की दो दिव्य बड़ी मूर्तियों तथा २४ अन्य मूचियों देवकुलिकाओं के लिये और सञ्चाईका देवी, अम्बिका देवी, सरस्वतीदेवी और गुरुमहाराज की मूर्तियों भी सुघड़ कारीगरों के हाथों से तैयार करवाई । इतनी तैयारी कर देशलशाहने प्राचार्य को विनंती कर देवगिरि चलने के लिये साथ लिया । देशलशाहने साथ में इतने स्त्री पुरुषों को लिया कि इस एकत्र समायद को देखकर ऐसा मालूम होता था मानो कोई सेना जा रही है। इस बात की सूचना जब सहजपाल को मिली तो वह मूर्तियों की अगवानी करने के लिये कई मील सत्वर सामने भाया । नगर प्रवेश का महोत्सव इतनी घूमधाम से हुमा कि रामदेव नृपति इस अपूर्व जमघट को देख चकित से हो दाँनो तले उंगली दबाने लगे। शुभ मुहूर्त में प्राचार्य श्री के करकमलों से प्रस्तुत बिम्बों की भञ्जनशलाकापूर्वक , दुष्टारिधहरः पार्श्वजिनः श्रीमूलनायकः । विषाप्यतामयं साधो ! सर्वकामितदायकः ॥९३३॥ २ चतुर्विशतिविम्बानि द्वे बिम्बे च बृहत्तरे । सत्याऽम्बा-शारदायुग्म गुरुमूर्तीरकारयत् ॥९३९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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