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________________ समरसिंह। ऊपर ' सहज ' के व्यक्तित्व की अच्छी छाप पड़ गई। यही कारण था कि वह इनके अतिरिक्त और किसी को कुछ नहीं पूछता था । इतना ही नहीं इस आश्चर्यजनक प्रभाव के परिणामस्वरूप उन्होंने तैलंगदेश के राजा के हृदय में भी जगह प्राप्त कर नी। सहजपालने इस अवसर का सर्वोत्तम उपयोग कर वहाँ पर एक जिनमन्दिर भी बनवाया । यहाँ तक कि करणाट और पाण्डु प्रान्त के नृपति भी उससे मिलने की इच्छा प्रकट करने लगे । यदि ऐसा हुआ तो कोई अनोखी बात नहीं थी, गुणवानों की तो हर स्थान पर कद्र होती ही है । धर्मी पुरुषों की इच्छाएँ भी वैसी ही हुआ करती हैं। देशल के मन में यह इच्छा हुई कि एक मन्दिर देवगिरि में भी बनवाऊं । जब उसने यह बात आचार्य श्रीसिद्धसूरि से कही तो उन्होंने कहा कि देशन, तू वास्तव में पूर्ण शौभाग्यशाली व्यक्ति है। ऐसे प्रान्त में तो जिन मन्दिर का होना नितान्त मावश्यक है। यह कार्य परम पुण्यप्राप्ति का होगा। यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो फिर देर करने की क्या आवश्यक्ता है। यदि उस मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथस्वामी की मूर्ति स्थापित की जाय तो बहुत अच्छा हो । देशलने अपने पुत्र सहज को इस आशय का एक १ तिलझाधिपतिर्यस्य कीर्त्या श्रुतिमुपेतया । प्रेरितः स्वपुरि स्थानं प्रददौ देववेश्मनः ॥९२७॥ २ काट-पाण्डविषये ययसः प्रसस्त सदा । तधीशमुख्यलोकमुत्कं तदर्शनेऽकरोत् ॥२८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ॥२८॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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