SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रेवती-दान-समालोचना rammm.wwwwwwwwwwwww षरण के नाम है. चंगरी के पत्र समान इसके पत्र होते हैं । शालिग्राम निघण्टु भूषण पृ० ८७८ मे लिखा है “सुनिषण्णक के नाम" । सितिवार, सितिवर स्वास्तिक, सुनिषण्णक, श्रीवारक, सूचीपत्र, पर्णाक, कुक्कुट, शिखी ये सुनिषण्णक के नाम हैं। सुनिषण्णक के गुणसुनिषएणक लघु, ग्राही, पौष्टिक, अग्निवधक,त्रिदोषनाशक, मेधा और रुचि को बढाने वाला, दाह ज्वरनाशक, और रसायन है। वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ९५२ में कहा है "शाल्मलिः-पु० स्त्रो०। Bombax malabarica. syn. Semalica malabarica. स्वनामख्यातमहातरौ । गुणाः ( गुण-) पौष्टिक, बलकारक, स्वादिष्ट, शीत, कसैला, हलका, स्निग्ध, वीर्य और कफ को बढ़ाने वाला है। ग्राही और कसैला उसके रस के ही गुण हैं। उसके फूल और फल के गुण उसी के समान हैं । घी और नमक में साधा हुआ उसका फूल प्रदर को नाश करता है. रस तथा पाक में मधुर, कणय, गरु, शीतल, ग्राही तथा वातकारक है। (भा. पू. १ भ. शाक व.) कृमि तथा प्रमेह का नाशक, रूखा, उष्ण, पाक में कटु, लघु, वात और कफ को हरने वाला है। (सु. मू ४६ अ.) कुक्कुटी, कुक्कुट शब्द का संगवाची शब्द है और इसी प्रकार मधु कुक्कुटिका शब्द बीजपूरक ( बिजौरा) बृक्ष का पर्यायवाची है । 'अपि' शब्द से सुनिषण्ण आदि का ग्रहण किया है। 'मधुकुक्कुटिका' शब्द में से 'मधु' विशेषण हटा दें तो 'कुक्कुटिका' शेष रहता है और कुक्कुटी शब्द से क प्रत्यय करने पर और ह्रस्व करने पर 'कुछ कुटिका' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy