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________________ रेवती-दान-समालोचना ५९ समाधान-हाँ है। जिनेन्द्र भगवान् ने सूत्र में कहा है कि वनस्पति मात्र को औदारिक तैजस कार्मण यह तीन अंग होते हैं। अतएव वृक्ष आदि में शरीर शब्द का प्रयोग करना अनुचित नहीं है। वैद्यक शास्त्र में भी वनस्पति के पत्र पुष्प फल आदि को अंग कहा है, अतएव कापोती शब्द के साथ शरीर शब्द का समास सार्थक है और 'ई' शब्द का प्रयोग भी युक्तियुक्त है ॥३९॥ कूष्माण्ड फल ही पित्त का नाशक विशेष रुप से प्रसिद्ध है, अतः यहां उसी का अर्थ क्यों न लिया जाय ? सो कहते हैं वास्तव में तो यहाँ जैसा शब्द इस समय सुना जाता है, उसका आप्त-वाक्य से तथा शक्ति-ग्रह से कूष्माण्ड अर्थ ही ठीक प्रतीत होता है ॥३०॥ ___ यद्यपि पारावत, प्लक्ष और कापोती, पित्त और दाह के नाशक हैं, फिर भी जयपुर निवासी श्रीलक्ष्मीरामजी आदि बैद्यों की सम्मति के अनुसार इस रोग में कूष्माण्ड फलं ही अधिक उपयोगी प्रतीत होता है। अतः निश्चित रूप से बल-पूर्वक कहते हैं कि इस प्रकरण में, वर्तमानकालीन पुस्तकों में 'दुवे कवोय सरीराओं' ऐसा जो देखा और सुना जाता है, सो इस वाक्य में आये हुए 'कवोयसरीर' (कपोत ) शब्द का कूष्माण्ड (कोला ) अर्थ ही वास्तविक ज्ञात होता है। शंका-कपोत शरीर' शब्द का कमाण्ड अर्थ किसी भी कोष में प्रसिद्ध नहीं है ऐसी हालत में यह अर्थ कैसे हो सकता है ? समाधान-कोष के बिना भी व्याकरण तथा आप्त वाक्य आदि से शक्ति ग्रहण न्यायशास्त्र में प्रसिद्ध है। सिद्धान्तमुक्तावली (कारि.. कावली ) के पृ• ८३ में कहा है व्याकरण से, उपमान से, कोश से, प्राप्तवाक्य से, व्यवहार से, वाक्यशेष से, विवरण से, तथा सिद्ध पद के सम्बन्ध से शक्ति का ग्रहण होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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