SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३ ] ने बताये हैं । अतः क्रियाकांड की प्रथा कुछ भले ही भिन्न है; किन्तु ध्येय एक ही है। श्वेताम्बर दिगम्बरों पर या दिगम्बर श्वेताम्बरों पर कलंक देते हैं, वे दोनों प्रमु महावीर के शासन पर ही कुठाराघात करते है । स्याद्वाद न्यायको समझने वाले विविध नयवादों से भी समन्वय कर सकता है, तो किंचित् स्थूल भेद वाले श्वेताम्बर दिगम्बर मान्यतां का समन्वय तो अति सुलभ है ही। जब कि, दिगम्बर भाइयों ने श्वेताम्बर आगमों पर आक्षेप करके महावीर ने मांसाहार किया है ऐसा भगवती सूत्र के 'रेवती दान' के अधिकार में सिद्ध करके श्वेताम्बर आगमों को तुच्छ समझाने की चेष्टा की है तो उन भाइयों को सत्य समझाने के लिये, उनकी दयनीय दशा को सुधार लेने की अनुकम्पा वृत्ति से जैन-धर्म दिवाकर पं० रत्न शतावधानीजी रत्नचन्द्रजी महाराज ने 'रेवती दान' के विषय में आगमोद्धार समिति के विद्वान् मुनि सदस्यों को उपस्थिति में जयपुर विराजते समय यह निबन्ध लिख कर दिगम्बर भाइयों का भ्रमनिवारण किया है। मुनि श्री ने वैद्यक के प्राचीन ग्रन्थों (वैद्यक शब्द सिन्धु, वनौषधि दर्पण, कैयदेव निघण्टु, शालिग्राम निघण्टु आदि) से, वैयाकरणीय ग्रन्थों ( कारिकाबलो, सुश्रुत संहिता आदि ) से शब्द कोष ग्रन्थों (शब्दार्थ चिन्तामणि आदि) से, काव्यप्रन्थों ( वाग्भट आदि) से; ऐसे २ प्राचीन एवं विश्वस्त ग्रन्थों से इस समालोचना में यह सिद्ध किया है कि, जिन शब्दों (मार्जार, कुकट, कपोत आदि) को एकार्थ वाची ( पशु, पक्षी) समझ कर आपत्ति की जाती है, वे शब्द वनस्पति के नाम वाची भी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy