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________________ रेवती-दान-समालोचना २५ हार से नरक गति होती है। स्थानांग सूत्र के चौथे स्थान में कहा हैजीव चार स्थानों (कारणों) से नरकायु कर्म बांधते हैं-महा आरंभ से, महा परिग्रह से, पंचेन्द्रिय जीवों के बध से और कुणिम-मांस को भाहार से। श्लोक में जो आदि पद दिया है उससे भगवती और औपपातिक सूत्र का ग्रहण करना चाहिए । अर्थात् भगवती शतक आठवें के नौवे उद्देशक में तथा औपपातिक सूत्र के देशना अधिकार में भी यही बात कही गई है। यह कथन किसी ऐसे-वैसे का नहीं किन्तु भगवान् जिनेन्द्र का कथन है। भगवान् का यह कथन एकदम स्पष्ट है-इसमें जरा भी सन्देह की गुंजाइश नहीं है। इस प्रकार जिन्होंने मांसाहार को नरकायु का कारण बताया है क्या वही उत्तम पुरुष मांसाहार करेंगे? कदापि नहीं कर सकते ॥ १६ ॥ और मीजिस जगह मांस पकाया जाता हो वहाँ मुनीश्वरों को अन्न आदि के लिए भी न जाना चाहिए। निशीथ सूत्र में ऐसा निषेध किया गया है ॥ १७ ॥ जिस स्थान पर मांस पकाया जाता हो वहाँ मुनि को दूसरा अब आदि आहार लाने के लिए भी नहीं जाना चाहिए, ऐसा निशीथ सूत्र में नौवें उद्देशक में निषेध किया है। वह निषेध इस प्रकार है जो भिक्षु मांस, मछली, भुट्टे होले आदि खाने वाले राजा या क्षत्रिय का मशन पान, खाद्य, स्वाद्य, ( आहार लेता है उसको चौमासी प्रायश्चित्त आता है) जिस पदार्थ के दोष के कारण, उसके निष्पत्ति स्थान तक को दृषित माना गया है, उस पदार्थ के दोष का तो कहना ही क्या ! इस उदाहरण से मांस की अशुद्धता और दुष्टता का प्रतिपादन किया गया है॥१७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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