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________________ रेवती-दान-समालोचना .. ... ... .mmmmmmmmm...~~~~mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm करना अर्थात् छींके पर रक्खे हुए को नीचे उतारना, ऐसा अर्थ किया है। छींके पर रक्खी हुई वस्तु भी सामान्य आहार नहीं किन्तु कोई विशिष्ट वस्तु ही होना चाहिए। अधिक कहने की आवश्यकता नहीं, दरअसल बात यह है कि 'मोएई' यह मुच् धातु का प्रेरणा-रूप है और बंधे हुए को खोलना इसका अर्थ है। रेवती द्वारा दिये हुए भौषध को ग्रहण कर मुनि, श्री महावीर स्वामी के पास गए। उन्होंने अपने लाये हुए शुद्ध पदार्थ रूप दवा को दिखखा। भगवान् ने अनासक्त भाव से उसका उपभोग किया । उसके सेवन से भगवान् का शरीर बिलकुल नोरोग हो गया। कहा भी है-वह विपुल गेगातंक शीघ्र ही उपराम को प्राप्त हुआ। शरीर हष्ट, नीरोग और सबल होगया। साधु, साध्वियाँ, श्रावक, श्राविकाएँ, देव, देवियाँ, तथा देवों के साथ नर असुर आदि समस्त लोक प्रसन्न हुए तब श्रमण भगवान् महावीर हृष्ट-तुष्ट हुए। ॥ संक्षिप्त कथानक समात ॥ अर्थमीमांसा शरीर, मांस, मार्जार, कृत, कपोत, और कुक्कुट, ये छह अनेकार्थक शब्द विचार करने योग्य हैं ॥१३॥ 'दुवे खोयसरीरा' इस वाक्य में कपोत और शरीर कद, 'मज्जारकाए' इस विशेषण वाक्य में मार्जार तथा कृतक शब्द, एवं 'कुक्कुडमंसए' यहाँका कुक्कुट और मांसक शब्द; इस प्रकार इन तीन वाक्यों में बाये हुए दो दो शब्द, संदिग्ध है क्योंकि वे दो-दो भर्य वाले है। शरीर कम से प्राणी के देह के अर्थ में प्रयुक्त होता है उसी प्रकार वनस्पति देर में प्रयोग किया जाता है। मांस मान्य प्राणी मांस की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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