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________________ रेवती-दान-समालोचना १५ रोग भी चिरकालीन नहीं है । उसे दूर करने का उपाय भी मैं जानता हूँ। मुझे तो इसकी भी आवश्यकता नहीं परन्तु तुम जैसों की आशंका को दूर करने के लिए उपाय बताता हूँ। इच्छा हो तो विषाद को दूर कर, प्रसन्न मन से इसी समय रेवती गाथापत्नी के घर जाओ। कहा भी है हे सिंह ! मेंढिकग्राम नामक नगर में रेवती गाथापत्नी के घर जाओ ॥ ९ ॥ वह जो अनेषणीय है उसे पहिले दिखाते हैं ___ उसने-गाथापत्नी ने मेरे लिए दो कपोत-शरीर पकाये है, वे ग्राह्य नहीं हैं, क्योंकि उनके ग्रहण करने में प्राधाकर्म दोष है ॥ १० ॥ रेवती गाथापत्नी ने भक्ति के वश होकर मेरे लिए दो कपोत-शरीर पकाये हैं। वे लाने योग्य नहीं हैं। क्यों ? इसलिए कि वे मेरे लिए पकाये हुए हैं अतः उन्हें ग्रहण करने से आधाकर्म दोष लगेगा। तात्पर्य यह कि आधाकर्म दोष से दूषित होने के कारण वह वस्तु ग्राह्य नहीं है। मूल पाठ इस प्रकार है___ तत्थ-रेवती गाथापत्नी ने मेरे लिए दो कपोत-शरीर सम्पन्न किये हैं। उनसे हमें प्रयोजन नहीं ॥ १० ॥ तो लाना क्या ? सो कहते हैं M मार्जारकृतक, कल बनाया हुआ कुक्कुटमांस (क) एषणा पूर्वक ले आओ, जिससे शीघ्र ही रोग दूर हो जाय ॥ ११ ॥ पूर्वोक्त कपोत-शरीर के अतिरिक्त, कल बनाया हुमा कुक्कुटShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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