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॥ ॐ अई ॥ रेवती-दान-समालोचना
(हिन्दी भाषान्तर)
मंगलाचरण जिस निबंध को प्रारंभ करने की इच्छा की है उसकी समाप्ति के लिए इष्ट देव को नमस्कार रूप मंगलाचरण करते हैं___ संसार-समुद्र के पार पहुंचे हुए महावीर को नमस्कार करके रेवती द्वारा दिए हुए दान के विषय में वास्तविकता का विचार किया जाता है ॥१॥
उप पद विभक्ति से कारक विभक्ति अधिक बलवती होती है, अतः यहाँ 'महावीरम्' पद में द्वितीया कारक विमक्ति का प्रयोग किया गया है।
इष्ट देव तो महावीर के अतिरिक्त और भी हैं किन्तु महावीर ही वर्तमान शासन के स्वामी हैं और प्रकृत निबंध का संबंध उन्हीं से है, इसलिए मंगलाचरण में उन्हीं का ग्रहण किया गया है।
युद्ध के विजेता को वीर कहते हैं किन्तु कम-युद्ध में विजय पाने वाले को महावीर कहते हैं। अर्थात् वीरों में भी जो महान् वीर हो सो महावीर । महावीर पद से यहाँ अतुल पराक्रम दिखलाने वाले वर्धमान स्वामी का अर्थ लिया गया है। ____ वर्धमान ने कहाँ अतुल पराक्रम दिखलाया है ? इसका समाधान करने के लिए कहते हैं-मव अर्थात् संसार, यही संसार भगाध होने के कारण मानों समुद्र है, उसके पार अर्थात् अन्त तक जो जा पहुंचे वह 'भवपाथोदधिपारग' कहलाता है। मतलब यह है कि वर्धमान स्वामी ने मोक्ष प्राप्त करने में अतुल पराक्रम दिखलाया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com