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[ ९१ ] मांसाहार से नरक का आयु बांधना माना है, भगवती सूत्र में वर्णन की हुई रेवती का देवायुष बांधना कथित है अतः उसके घर मांसाहार होना यह किसी प्रकार भी नहीं हो सकता। __ सातवीं आशंका में पण्डितजी लिखते हैं कि परिवासित (बासी) शाक भोजन दूषित एवं अभक्ष बतलाया है इत्यादि
श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में बाईस अभक्ष्य कहे गये हैं। उन्हों में बासी शाक तथा अन्नादिको किसी ने भी अभक्ष्य नहीं माना, (देखिये दिगम्वरी पंडित दौलतरामजी कृत क्रियाकोष नाम की पुस्तक ) इसमें बाईस अभक्ष्यों के नाम इस प्रकार गिनाए गए हैं।
१ ओला, २ घोल बड़ा, ३ निशि भोजन, ४ बहु बीजा, ५ बेंगण, ६ सेंधाणा, ७ बड, ८ पीपल, ९ ऊमर, १० कठुमर, ११ पाकर जो फल होय, १२ अजाण ॥ १२ कन्दमूल, १४ माटो, १५ विष, १६ आमिष, १७ मधु, १८ माखन अरु, १९ मदिरा पान ॥ फल, २० तुच्छ, २१ तुषार, २२ चलितरस, ये जिनमत बाईस बखाण ।।
इन बाईस अभक्ष्यों में बासी शाक तथा अन्नादि का कहीं जिक्र नहीं है। यदि चलित रस शब्द से बासी अन्नादि ग्रहण कर लिया जाय तो यह ठीक नहीं । क्योंकि इसका अर्थ यह है कि, जिस वस्तु से वर्णगन्ध रस स्पर्श बदल गये हों यानी सड गया हो वह अभक्ष्य है । चाहे वह रात वासी हो या उसी दिन का बना हुआ क्यों न हो, यह रसविक्रिया ऋतु परत्वेन पृथक २ होती है । ग्रीष्म ऋतु में जो वस्तु एक रात्रि से बिगड जाती है वही शरद ऋतु में दो दिन तक नहीं बिगडती, और वर्षा ऋतु. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com