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[ ९२ ] में वही प्रातः काल से शाम तक बिगडे बिना नहीं रहती, इस लिये इसमें समय का नियम नहीं हो सकता । अभक्ष्यता में केवल यह देखना योग्य है कि रस चलित हुआ है या नहीं? यदि रस चलित हो गया है तो श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों आम्नायों में अभक्ष्य है। यदि रस चलित नहीं हुआ है तो अभक्ष्य नहीं । इस प्रमाण से अब यह भी प्रकट हो गया होगा कि दोनों आम्नाय केवल वासी अन्नादि को अभक्ष्य नहीं ठहराते, प्रत्युत चलित रस वाली वस्तु को अभक्ष्य ठहराते हैं। तो रेवती की बहराई हुई बासी वस्तु चलित रस न होने से आदेय है और उसी का सिंह मुनिने दान लिया है। इसमें किसी प्रकार का दोष नहीं होता। आठवीं आशंका में पण्डितजी लिखते हैं कि भगवती सूत्र एक गद्यमय है, उसमें पद्यों के समान अक्षर संख्यापूर्ण करने की कोई कठिनाई नहीं थी, जो ग्रन्थकार को कुष्माण्ड, बीजपूरक सरीखे सरल वनस्पति सूचक शब्द छोड़कर कुक्कुट, कपोत सरीखे पक्षी बाचक शब्द लिखने पड़े___इसका उत्तर यह है कि, कितनेक शब्द ऐसे हैं जो कि देशाचार के अनुसार रूढि गत होते हुए भी कितने ही अर्थों के प्रतिपादक होते हैं। जैसे कि “सूआ" शब्द शुकपक्षी (तोता) के अर्थ में प्रयुक्त होता हुआ भी रूढि की तरह ही सूआ नामक शाक के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। सूआ शाक है जो पालक शाक के साथ प्रायः बनाया जाता है, उसको बेचनेवाले पुकारते हैं कि लो "सूत्रा पालक" उससमय प्राहक शीघ्र ही यह समझ
जाते हैं कि सूआ का साग बेचनेवाला पुकारता है । न कि सूत्रा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com