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________________ । ९० ] वह यहाँ से काल करके स्वर्ग में जानेवाली बताई है । इन दोनों के सूत्र पाठ इस प्रकार से हैं। "तएणं सा रेवइ गाहावइणी अंतोसत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया अट्ट दुहट्ट वसट्टा कालमा से कालंकिच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलूएच्चूए नरए चउरासोई वाससह ठिइएसु नेरइएसुनरइएत्ताए उबवरणा" पहा०८:२७ ।। "तएणं तीए रेवतीए गाहावतिणीए तेणं दव्व सुद्धणं जाव दाणेणं सोहे अणगारे पडिलाभिए समाणेदेवाउए निबध्धे जहा 'विजयस्स जाव जम्म जीवियफले रेवतीए गाहा वतिणीए।" भग १५-१० इन दोनों पाठों से बाचक वर्ग तथा पण्डितजी अच्छी तरह से समझ गये होंगे कि, उपासक दशा सूत्र में वर्णन की हुई रेवती ने देवता का आयुष्य बांधा और अपना जन्म सफल किया । इससे यह भी आशा की जा सकती है, कि अब पण्डितजी को भी दोनों रेवतियों को पृथक २ समझने के कारण अपनी मोटी आपत्ति दूर करने में देर न लगेगी। आगे पण्डितजो लिखते हैं कि, यदि यह मांस भक्षण न करतो होती तब तो कपोत, कुक्कुट शब्दों का अर्थ बनस्पति रूप किसी प्रकार किया जाता । इस लेख से यह तो भली भांति विदित होता है, कि इन शब्दों का वनस्पति अर्थ होना तो पण्डितजी को भी मान्य है । अब विचारणीय यह है कि, वहां वनस्पति अर्थ है या नहीं। इसका समाधान अधो लिखित है कि देवता का आयुष बांधने वाली भगवती सूत्र ने वर्णन की हुई रेवती मांसाहार करने वाली नहीं, यह तो दो और दो चार जैसी बात है। क्योंकि श्वेताम्बर सिद्धांतों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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