________________
( ५७ ) ८० दिने दूसरे भाद्रपद अधिकमास में सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण कृत्य करना ? सर्वसंमत सूत्र नियुक्ति चूर्णि आदि का पाठ हो तो हाजिर कोजिये, अन्यथा सूत्र-नियुक्ति-चूर्णि आदि पागम-विरुद्ध आप लोगों का इस विषय में कुटिलता युक्त नाना प्रकार का महामिथ्या उत्प्सूत्र प्रलाप कौन सत्य मानेगा? देखिये कि-"भदवर शुद्ध पंचमीए" इत्यादि चूर्णिपाठ से तो भाद्रपद शुक्ल पंचमी को ५० दिने चंद्रवर्ष की पर्युषण को शालिवाहन राजा के कहने से ५१ दिने छठ को श्रीकालकाचार्य महाराज ने आज्ञा-भंग-दोष के कारण से नहीं किया, किंतु ४६ दिने चौथ को किया है, तो केवल इस कथन संबंधी चूर्णिपाठ को बतला का उलो चूर्णिपाठ से विरुद्ध दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने वा अभिवद्धित वर्ष में भाद्रपद में ८० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण कृत्य करना बतलाते हो,
और स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद में ५० दिने वा दूसरे श्रावण में ५० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण कृत्य करना निषेधते हो, परंतु नियुक्तिकार श्रीमान् भद्रबाहु स्वामि और चूर्णिकार श्रीजिनदाल महत्तराचार्य महाराज तथा श्रीकल्पसूत्रादि अागमउद्धारकर्ता श्रीदेवर्द्धिगणितमाश्रमणजी महाराज श्रादि प्राचीन वृद्ध प्राचार्यो के वचनों पर कौन भव्य श्रद्धावान् नहीं होगा? देखो श्रोनियुक्तिकार महाराज श्रीभद्रबाहु स्वामी ने जैनसिद्धांत टिप्पने के अनुसार पौष और आषाढ़ मास की ही वृद्धि होती थी, इसी से ये असली मूल मुद्दे का अभिवर्द्धित वर्ष संबंधी गृहिज्ञात सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्य युक्त श्रीपर्युषण पर्व २० दिने श्रावण शुक्ल पंचमी को और चंद्रवर्ष संबंधी पर्युषण पर्व ५० दिने भाद्रशुक्ल पंचमी को लिखे है । तत्संबधा पाठ । यथा
इत्यय अणभिग्गहियं, २० वीसतिरायं २० सवीसइ १ मासं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com