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र्मासी कृत्य करने उचित नहीं हैं, किंतु चार महीने प्रथम कार्तिक मास में चतुर्मासी कृत्य करने उचित हैं । इसी तरह ५० दिने पर्युषणपर्व करने की शास्त्र की आज्ञा मानते हो तथा अधिकमास को गिनती में नहीं मानते हो तो ८० दिने दूसरे भाद्रपद अधिक मास में कदाग्रह से सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषणपर्व के कृत्य क्यों करते हो ? ५० दिने स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद मास में सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण पर्व के कृत्य करने में किस आगम के वचन को बाधा आती है, सो प्रमाण बतलाना उचित है, अन्यथा उक्त कदाग्रह को त्याग देना चाहिये । क्योंकि शास्त्र
आज्ञा का भंग नहीं होने के लिये श्रीकालकाचार्य महाराज ने चंद्रवर्ष में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को ४६ दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषणपर्व के कृत्य किये हैं तो ५० दिने स्वाभाविक प्रथम भाद्रपद मास में सांवत्लरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषणपर्व के कृत्य करने त्याग कर ८० दिने दूसरे भाद्रपद अधिक मास में वा ८० दिने भाद्रपद में सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण कृत्य करते हुए शास्त्र-आज्ञा-भंगदोष के भागी क्यों बनते हो ? देखिये कि श्रीपर्युषणकल्पसूत्र में मूलपाठ (नो से कप्पइ ) टीकाओं में (न कल्पते ) निशीथचूर्णि आदि ग्रंथों में
कालगायरिएहिं भणियं न वद्दति अतिकामे ।
इत्यादि वाक्यों से ५० वें दिन पंचमी की रात्रि को सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युपण कृत्य किये विना उल्लंघना ही कल्पता नहीं है, इस तरह शास्त्रकारों ने साफ मना लिखा है, तथापि इस प्राज्ञा का भंग आप लोग करते हैं तो फिर शास्त्रार्थ करने में वा अपना झूठा मंतव्य सिद्ध करने में आप लोगों को किंचित् लज्जा भी नहीं पाती है ? अस्तु, किस भागम में लिखा है कि १०० दिने दूसरे कार्तिक अधिकमास में चतुर्मासी कृत्य और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com