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• प्रवन्धावलो.
काशी नाम सुठाम, धाम सदा शिव को सुखद। तीरथ परम ललाम, सुभग मुक्ति बरदान छम ॥ ७ ॥ ता पावन पुर मांहि, भयो जन्म या ग्रन्थ को। महिमा वरणि न जाहि, सगुण रूप यस रस भस्रो ॥ ८॥ कृष्ण नाम सुख मूल, कलिमल दुख भंजन भजत । पावहि भवनिधि कूल, जाके मन यह रस रमहि ॥६॥ कुरुक्षेत्र शुभ थान, ब्रजवासी हरि को मिलन ।
लीला रस को खान, प्रेम रन गायो रतन ॥१०॥ बङ्गाल हाते के जैन शिला लेखों की खोज में मैं जगत सेठ वंशके इतिहास का भी पता लेता रहा। ई० सन् १९२३ में जब कलकत्ते में 'इण्डियन हिस्टरिकल रेकर्डस कमीशन' बैठा था उस समय मैंने जगत सेठ की वंशावली पर एक निबन्ध पढ़ा था और उक्त रत्न कुंवर बीवी के विषय में मुझे खो साधन मिले थे उसका सारांश यह है कि वह लखनऊ के राजा बच्छराज की कन्या थीं और राजा शिवप्रसाद जी के पितामह राजा उत्तमचन्द जी से उनका विवाह हुभा था और उनके पुत्र कुवर गोपीचन्द जी थे। कुवर गोपीचन्द जी के पुत्र ही प्रसिद्ध राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द थे और उनकी कन्या गोमती बीवी थी। आप भी बड़ी धर्मात्मा और विदुषी थीं। 'गुणस्थान क्रमारोह' आदि कठिन जैन विषयों का आपने अच्छा अभ्यास फिया था।
मुर्शिदाबाद के जगत सेठ घराने वालों से रत्न कुवरिजी के सम्बन्ध के विषय में कुछ लिख देना उचित होगा।
जगत सेठ वंश के पूर्वज साह होरानन्द जी प्रथम पङ्गाल आये थे। इनके सेठ माणिकचन्द जी बगैरह सात पुत्र और धनवाई नाम की एक कन्या थी जिन का विवाह आगरा निवासी राय उदयचन्द जी गोखरू से हुआ था। इनके चार पुत्र थे जिन में तीसरे पुत्र फतेचन्द जी को पेठ माणिकचन्द जी ने गोद लिया था और उन्हें ही दिल्ली के बादशाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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