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* प्रबन्धावली.
फर्रुखशियर ने प्रथम जगत सेठ की पदवी दी थी। राय उदयचन्द जी के मध्यम पुत्र सभाचन्द जी थे, इनके पुत्र अमरचन्द जी और उनके पुत्र गजा डालचन्द जी बनारस बसे। इन्हीं के पुत्र गजा उत्तमवन्द जी की धर्मपत्नी यह रत्न कुवर थीं आप के पुत्र गोपीचन्द जी और पौत्र प्रसिद्ध राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द हुर ।
भारतीय भाषावित्यसिद्ध विद्वान् सर जी० ए० प्रियसन साहेव ने भी 'Modern Vernacular Litcrature of Hindustan' नामक ग्रन्थ के पृ. ६६ में रत्न कुंवर के विषय में क्रमिक नं. ३७६ में वर्णन किया है। प्रत्यकर्ता स्वयं उनके पौत्र राजा शिवप्रसाद जी के मित्र थे और इनके विषय में राजा साहब ने ग्रियर्सन साहब को सन् १८८७ में जो पत्र लिखा था उसका सारांश यह था कि बीबी रत्न कुंवर जी लगभग ४५ वर्ष हुए कि स्वर्गवास हुआ था उस समय गजा साहब की अवस्था १६ वर्ष की और उनको पितामही को ६० और ७० के बीच की थी। 'प्रेमरत्न' प्रन्थ के अतिरिक्त आप के रचे और भी बहुत से पद्य हैं तथा अपने हाथ की लिखी प्रति मौजूद है। भाप संस्कृत जानती थीं और राजा साहब आप से बहुत कुछ शिक्षा पाये थे। हस्ताक्षर आप के सुन्दर थे तथा संगीत पर आप का प्रेम था, कुछ २ फारसी सी पढ़ी हुई थीं।
The Heritage of India Series में २० कवै० साहब ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा है, उस पुस्तक के पृ० ७६ में पीबी रख कुंवरि और उनके 'प्रेमरत्न' प्रत्यादि की रचना का उल्लेख है ।
माशा है कि हमारे प्रिय पाठकगण ओसवाल समाज में और जो २ विदुषियों हो गई हैं उनकी खोज कर पूरा इतिहास प्रकाशित करने का प्रयत करेंगे।
'मोसवाल नवयुवक' ( सं० १९८६ वर्ष ५, अङ्क ५, १० १८७-१८६ )
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