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Rajputana and Malwa during the medierål and earls modern periods forms quite a distinctire thing in the expression of Indian culture and by its extent and variets presents a veritable embarres de richesse." __ दुर्भाग्य से आज जैन समाज की ऐसी हालत है कि २५०० शताब्दियों में जो विपुल साहित्य रचा गया, वह केवल भण्डारों और वस्त्रों में बन्द है। जैन-समाज व्यापार में प्रवेश करके इतना व्यापारी हो गया कि वह साहित्य और कला की महत्ता को बिल्कुल भूल गया और धार्मिक झानशीलता के अभाव में साहित्य की सृष्टि कक गई, सच्चे विद्वानों और कलावानों का आदर इस समय में घट गया, जिसके कारण समाज की अप्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो गया है। नये साहित्य की सृष्टि की बान तो दूर, आज तो समाज में इस बात की भी दरकार नहीं समझो जाती कि हमारा प्राचीन साहित्य अधिकाधिक प्रकाश में आवे, हम उससे फायदा उठाव और संसार भी उसकी महत्ता, गुरुता और प्रामाणिकता समझ सके। हमारे देश का यह दुर्भाग्य ही है कि अपने घर की ज्योति उस समय तक छिपी रहती है, जब तक विदेशी विद्वान् आकर हमको वह बतलाव नहीं। हमारे साहित्य की महत्ता समझाने के लिये टाड, फार्बस, वाटसन, हार्नल, जैकोबी और विन्टर नित्स आते हैं और उनके द्वारा हमारे धर्म-साहित्य के जो प्रामाणिक और सुसम्पादित प्रकाशन होते हैं, उनको देख कर हमें दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है। आज हमारे कितने ऐसे वीर हैं जिन्होंने अपने साहित्य और दर्शन के लिये जीवन उत्सर्ग किया हो; कितने ऐसे हैं जिन्होंने उत्सर्ग करनेवालों का सम्मान किया है या कर सकते हैं ? क्या हम एक भी वाटसन. एक भी जैकोबो या एक भी हार्नल नहीं पैदा कर सकते-नहीं नैयार कर सकते; पर यहाँ साहित्य का महत्व ही क्या है ? महात्मा गान्धी ने एक बार जैनसाहित्य की अवस्था के विषय में कहा था- गुजरात में जैन-धर्म की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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