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________________ * २२ * * प्रबन्धावली. संवत् नाम कर्ता (२०) १६६३, कर्पूर मंजरी राम-कनक सुन्दर (२१) १६६४, विजय देव सूरि रास- कनक सौभाग्य (२२ १६६७, जीव स्वरूप चौपाई-गुण विनय (२३) १६६६, शील रक्षा प्रकाश - नय सुन्दर अगरहवीं शताब्दी। गत शतादी से ही बराबर साहित्य की पूरी जाग्रति देखने में आती है और इस समय के बहुन से गद्य पद्य प्रन्थ विद्यमान हैं। प्रेमौजी ने दोनों सम्प्रदायों के २५ विद्वानों के नाम तथा उनके भाषा साहित्य के प्रन्थों का कुछ हाल दिया है। मिश्रबन्धु विनोद में ६ कवियों का उल्लेख किया गया है। वकील मोहनलाल दलीचन्द जी 'ने लगभग ३० ग्रन्थकर्त्ता और उनके प्रन्थों की टीप लिखी है। बाबू श्यामसुन्दरदास जी ने इस शताब्दी के निम्न लिखित प्रन्य और ग्रन्थ फर्ताओं का उल्लेख किया है। (१) सं० १७१५ में अवल कीर्ति आचार्य कृत 'विषापहार भाषा' । (२) सं० १७४१ में धर्ममन्दिर यणि कृत 'प्रबोधचिन्तामणी' । (३) सं० १७७५ में मनोहर खण्डेलवाल कृत 'धर्मपरीक्षा'। फलकत्ता संस्कृत कालेज में इस शताब्दी के जैन भाषा साहित्य की का उत्तम उत्तम हस्तलिखित पुस्त्र के विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त इस समय के जो भाषा साहित्य के उत्तम ब्रन्थ उपलब्ध हैं उनमें से कुछ प्रकाशित हैं और बहुत से अप्रकाशित है । कवि लाल विजयजी के शिष्य पं० सौभाग्य विजय कृत सं० १७५० का 'तीर्थमाला स्तवन' अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है । यह छन्दोबद्ध तीर्थयात्रा का विवरण बड़ी ही योग्यता से बनाया गया है। कवि ___ * यह तीर्थमाला गुजराती में "प्राचीन तीर्थम्मला संग्रह" नाम की पुस्तक में छपी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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