SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रबन्धावली. आगरे से प्रायः सभी प्रधान तीर्थस्थानों में गये है और प्रत्येक स्थान का वर्णन काव्यरस पूर्ण है। इसके आदि और अन्त के काव्य इस प्रकार हैभारम्मदोहा-आनन्द दाई गरे प्रणमौ पाय निणंद। चिंतामणि चिंताहरण केवल शाम दिनंद । समरू शारद स्वामिनी जिन पाणी सुखदाय । जास प्रसाद कवियण तणी वाणी निरमल थाय । प्रणमी श्री गुरु करणयुग प्राणी अधिक उल्लास । तीर्थमाल प्रवतणी करस्यों बचन विलास ॥ जहां जहां श्री जिनराज के कल्याणक कहिवाय । विज नयणे निरख्या जिके देश गाम ने टाय । कहिस्यों ते सघला हिवै सुणज्योःचतुर सुजाण । सुणतां तीरथमाल ने जनम हुवै सुप्रमाण । अंत में-- तीर्थमाला, अतिरसाला, पंच कल्याणक तणी। संवत सप्तरसे पचासे लाभ आणी मैं थुणी । श्री विजयरत्न सूरि गछपत्ति सदा संघ सुहं करो। गुरु लालविजय तणे पसाए सौभाग्य विजय जय २ करो। इस समय प्रसिद्ध अध्यात्मिक लेखक यशविजय हो गये हैं, जिन्दोंने जैन तत्वज्ञान के विषय में (१) अध्यात्म सार (२) समाधि सतक (३) समता सतक (४) द्रव्यगुणपर्याय रास (५) योग दूधि स्वाध्याय (६) वीर स्तुति (७) वाहन समुद्र विवाद-(८) निश्चय-व्यवहार नय विवाद (१) दिकपट चौरासी बोल (१०) षट्स्थान सरूप चौपाई आदि कई भाषा अन्य रचे हैं। इस शताबी के यहां कुछ प्रचलित भाषा ग्रन्थों को तालिका दी जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy