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________________ * प्रवन्धावलो. सं० १६८६ में पंडित कुशलधोर गणि रुत 'वेलि' का गद्यात्मक पालबोध इस समय के हिंगल गद्य जन साहित्य का अच्छा ममूना है। पावू श्यामसुन्दरदास जी ने अपनी रिपोर्ट में सं० १६१६ के कवि प्रझरायमल कृत 'हणुवंत मोक्षगामी कथा' का उल्लेख किया है। वकील मोहनलाल दलीचन्द जी ने भी इस शताब्दी के बहुत से भाषा जैन प्रन्थों के नाम प्रकाशित किए हैं। उक्त शताब्दी के कुछ प्रन्थों की क्रमवार तालिका : संवत् नाम फर्ता (१) १६०१, अगरदस रास-सुमति मुनि (२) १६०६, धन्ना रास-हेमराज (३) १६१२, पारेवत रास-प्रीति विजय (४) १६१६, क्षुलक कुमार रास-सोमविमल (५) १६१८, सप्तरभेदी पूजा-साधुकीर्ति (६) १६२२, पेचाख्यान चौपाई-गुणमेरु सूरि (0) १६२४, भाषढ़भूति प्रवंध-साधुकीर्ति 1८) १६२५, धर्मपरीक्षा-मुमति सूरि (६) १६३२, मुनिमालिका-चारित्र सिंह (१०) १६३३, क्षुलक कुमार चरित्र-सोमविमल (११) १६३४, बारवली चरित्र-विजय देव सूरि (१२) १६३८, शत्रुजय उधार स्तव-नयसुन्दर (१३) , शालिभद्र चौपाई-मतिसार (१४) , भाषाड़ भूति चोढालिया-कनकसोम (१५) १६४४, सुन्दर सति चोपाई-आनन्द सूरि (१६) १६४५, रसरमा सार-जयचन्द्र (१७) १६५०, अमय कुमार चौपाई-पनराज (१८) १६५७, छिन्नु जिनस्तुति-जयसोम (१६) :६५६, प्रत्येक बुद्ध रास -सौभाग्य सुन्दर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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