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________________ * प्रवन्धावली बौद्धों को तरह जैन लोग क्रम क्रम से वैदिक धमवालों से द्वेष न बडाते हुए परस्पर का सम्बन्ध दूर नहीं करते रहे, बल्कि बहुत से श्रावक नाममात्र जैनी कहलाने के सिवा सांसारिक आचार व्यवहार ध्यादि वैदिक हिन्दुओं की तरह करते और अद्यावधि करते चले आते हैं। बौद्ध विद्वानों ने वैदिक विद्वानों के ग्रन्थों की मर्यादा नहीं रक्खा। परन्तु प्राचीन जैन विद्वान् जैनेनर कवियों के साहित्य का बहुत कुछ आदर करते रहे। प्रायः हिन्दुओं के प्रसिद्ध प्रसिद्ध साहित्य ग्रन्थों को अच्छी अच्छी टीकाएँ जैन विद्वान् लोग बड़े प्रेम और पाण्डित्य से लिख गये हैं, इसका यही कारण है कि साहित्य का दृष्टि से जेनेतर विद्वानों के रचे हुए ग्रन्थों को वे लोग अपना ही समझते थे। जैन विद्वानों की बनाई हुई साहित्य के सिवा व्याकरण, न्याय, अलङ्कार : वैद्यक, ज्योतिष आदि के : जैनेतर ग्रन्थों की टीकार, वृत्ति आदिया, उन पर स्वतन्त्र ग्रन्थ बहुत से हैं । अर्जुन प्राचीन ऋयों का रक्षा भी प्रायः जैन भण्डारों में ही हुई जैसा कि उपलब्ध पोथियों का इतिहास कहता है । ब्राह्मणों के पहले दो कर्मों, अध्यापन और अध्ययन का प्रकृत अनुसरण जैन आचार्यों तथा साधुओं ने यहुत पूर्ण रीति से किया । *9 सिक प्राचीन साहित्य की खोज और प्रकाशन की रुचि बढ़ी है जिसका श्रेय मुख्यतः श्री विजयधमं सूरि जो और उनके योग्य शिष्य श्री इंद्रविजयजी आदि को है । आचाय्यं जी ने ऐतिहासिक रासमाला, ऐतिहासिक सिज्झायमाला आदिःका विवेचनपूर्ण प्रकाशन आरम्भ किया है। जैनों के यहां यह आग्रह नहीं। रहा कि स्तुति, पूजन आदि प्राचीन भाषा में ही हों । मन्त्र तथा धर्मग्रन्थ प्राकृतः में रहते आए, किन्तु स्तुति, गीत तथा प्रवचन देश भाषा में होता रहा । ब्रज की नई कृष्णपूजा में यदि ब्रजभाषा के गीत संस्कृत मन्त्रों की तरह न चल जाते तो अट्टछाप के कवियों को मधुर कवितावली का विकास या प्रचार न होता । जैन स्तवनों तथा गीतों के पुराने संग्रहों में यह भो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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