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________________ * प्रवन्धावली * रेह' रालमां कई कई मरुभूमिनो भाषानो छाया आवे छे, पण सामान्य घरण गुजर तीनु छें।" ऐसे ग्रन्थों को हिन्दी में ही स्थान देना उचित होगा। चाहे डिङ्गल चाहे पिङ्गल, चाहे गुजरातो चाहे ब्रजभाषा सभी एकही हिन्दी को संतति हैं । देशभेद से अल्पविस्तर भाषा और शब्दों का भेद होता गया है। मैं प्राचीन हिन्दी जैन साहित्य में प्रांतिक विभाग करना उचित नहीं समझता । *६* वर्त्तमान में जो प्राचीन हिन्दो जैन साहित्य उपलब्ध हैं उसमें गद्य साहित्य को अपेक्षा पद्य साहित्य की संख्या बहुत अधिक है । जो कुछ हिन्दी में रचना होती थी, सभी पद्यमय थी । मूल सूत्रों की व्याख्या, तथा टिप्पणी ( जिसको 'टब्बा' भी कहते हैं ) और संस्कृत: प्राकृत धर्मशास्त्र के ग्रन्थों की भाषा, वृत्ति, वचनिका और क्लिष्ट दाशनिक विषयों पर छोटे छोटे लेखों के सिवा कोई साहित्य के गद्य ग्रन्थ हमारे देखने में नहीं आए हैं । परन्तु पद्य साहित्य की भरमार श्वेतास्वरी दिगम्बरी दोनों सम्प्रदायों में पाई जाती है । पद्य साहित्य में चरित्र, रास, चतुष्पदी ( चौपाई ) प्रधान हैं। इनके सिवा चौढालिया, ढाल, सिज्झाय, वार्त्ता, विनती, वंदना, लावनी आदि भी हैं। स्तवनों की भी संख्या बाहुल्य से मिलती है; उनमें बड़े छोटे कवित्त, छन्द, दोहा, आदि दोनों सम्प्रदायों के उच्च कोटि के कवियों के रचे हुए सैंकड़ों हैं । मूर्तिपूजन से भी भाषा साहित्य में बहुत कुछ सहारा लगा है। खास करके सत्रहवीं शताब्दी से इस विषय पर नाना प्रकार की पूजाओं की रचना दोनों संप्रदायों में मिलती है और साहित्य की दृष्टि से इसका भी स्थान उच्च है । + गुरु + जैन विद्वानों को सदा से इतिहास से अधिक प्रीति रही और की मात्रा श्वेताम्बर जैनों में अधिक थी, इसलिये गुरुओं की 'प्रभावना' के वर्णन के चरित्र, ऐतिहासिक घटनाओं से पूर्ण, उनके यहां अधिक मिलते हैं। अब गुजरात के श्वेताम्बर जेनों में ऐतिहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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