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________________ [ व ] उपे चित्रोंकी पन्द्रह वीस चित्रावलियों, पुराने टिकटों, कलाकी वस्तुओं, अखबारोंकी कतरन, जैन-सम्बन्धी लेखों तथा समाचारों, सम्राट् की रजत-जयन्ती, राज्याभिषेक तथा शव-जुलस का संग्रह, बड़ा ही अनुपम हुआ है, जो कि और कहीं नहीं मिल सकता।' आप ३१ मई; १९३६ को संध्याके सवा पांच बजे पूर्ण ज्ञानमें समाधीके साथ ४ पुत्र, ५ कन्या तथा पौत्र प्रपौत्र आदि परिवार को छोड़कर देव-लोक पधारे। आपके विषयमें प्रसिद्ध विद्वान श्री ब्रजमोहनजी बर्माने 'विशाल भारत' में लिखा है:___ 'नाहरजो को महान् विद्वत्तासे कहीं बढ़कर थी उनकी सजनता । जो कोई भी उनसे मिलता, वही उनको सजनताकी तारीफ करता था। नाहरजी धनी थे. सुशिक्षित थे, विद्वान थे, लेकिन सबसे बढ़कर वे थे आदमी और आजकल आदी होना आसान नहीं है "हमने माना है फरिश्ता शेखजी, ‘आदमी' होना बहुत दुश्वार है !" नाहरजीका सरल स्वभाव और उनका सहज प्रेम ऐसा था, जो सभीको आकर्षित कर लेता था। यद्यपि नाहरजी वयोवृद्ध थे, साठ वर्षसे ऊपरके हो चुके थे, फिर भी उनमें युवकोंसे बढ़कर उत्साह और शक्ति थी। वे दिन में कभी सोते नहीं थे। उनको सुबहसे शाम तक काम करते देखकर युवक भी लजित हो जाते थे। जो कोई भी उनका संग्रह देखने जाता, उसे वे बड़े प्रेम और उत्साहसे दिखलाते थे। अपने अद्भुत संग्रहकी दुर्लभ वस्तुओंको दिखलाने में चार-चार पांच-पांच घंटे लगाकर भी वे थकते न थे। आगत सज्जनोंका आदर-सत्कार करनेके अतिरिक उन्हें मिलाने-पिलानेका मी नाहरजो को बड़ा शौक था। उनकी सबसे बड़ी बी यह थी कि वे बुडोंमें बुड़े, प्रोढ़ोंमें प्रौढ़, युवकोंमें युवक और बच्चोंमें पच्चे बन जाते थे, इसीलिए बच्चोंसे लेकर बूढ़ोंतक जो कोई भी इनसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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