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मिलता था, उसे यही जान पड़ता था कि वह अपने किसी पूर्व परिचित मित्रसे मिल रहा है। गरीब हो या अमीर- यहां तक कि नौकरों तक उनका वर्ताव एक-सा होता था । नाहरजी अपने टाइपके एक विशेष उदाहरण थे-ऐसे टाइपके, जो आजकल प्रायः दुर्लभ है ।'
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