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[ घ ] 'कलकत्ताके ओसवालोंमें जब देशी-विलायतीका युद्ध षड़ी खुरी तरहसे चला था तब उसे भी आपने बड़ी दूरदर्शिता और प्रेमके साथ निपटा कर समाज का बहुत हित किया। श्री अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन के प्रथम अधिवेशन पर जब आपको प्रेसिडेन्ट चुना गया तब आपने १०४ डिग्री बुखार होते हुए भी कलकत्ताले अजमेर तक रेलमें सफर किया और समाज-सेवासे मुख म मोड़ा।' इस अवसर पर आपका भाषण बहुत महत्वपूर्ण तथा समयोपयोगी हुआ था।
आपको पुरानी चीजोंकी खोजके साथ साथ उनका संग्रह करनेका भी बहुत शौक था। आपने बहुत अर्थ व्यय कर पुराने सुन्दर भारतीय चित्रों, भारतके विभिन्न स्थानोंकी प्राचीन मूर्तियों, सिक्कों, क्यूरियो, हस्तलिखित पुस्तकों आदिका संग्रह किया और उसे कलकत्तेमें अपने कनिष्ठ भ्राता की स्मृतिमें बने हुए कुमार सिंह हालमें प्रदर्शित कर रखा है। अपनी माताजी के नाम पर आपने ई० सन् १९१२ में श्री गुलाब कुमारी पुस्तकालयकी स्थापना की थी एवं आज वह पुस्तकालय जैन ग्रंथों एवं पुरातत्वकी पुस्तकों के लिये कलकत्तेमें ही नहीं बल्कि भारतवर्षमें एक प्रसिद्ध संस्था हो रही है । आप हर तरहका संग्रह करते थे। 'आपमें संग्रहकी प्रवृत्ति एक जन्मजात संस्कार ही था। छोटी-छोटी चीजोंका भी वे ऐसा संग्रह करते थे कि जो कलाकी दृष्टिसे बहुत महत्वपूर्ण और दर्शनीय हो जाता था। आपके यहां मासिक पत्रोंके मुखपृष्ठका जो संग्रह है वह इस बातका प्रमाण है। इन मुखपृष्ठोंको एकत्रित करनेमें आपने जो परिश्रम
और समय व्यय किया उसकी सार्थकता एक साधारण व्यक्ति नहीं समझ सकता, फिर भी इतिहास और कलाप्रेमीके लिए वह संग्रह कम कीमत नहीं रखता। इसी प्रकार विवाहकी कुंकुम पत्रिकाओंका संग्रह भी आपने किया था और इससे यह बतला दिया था कि छोटी-छोटी वस्तुएँ भी अपना महत्व रखती हैं।' 'आप प्रत्येक वस्तुको बड़े सुन्दर ढंगसे सजाकर रखते थे। आपका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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