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________________ [ ग] था, आपने ही मूलवेदीके नीचेसे उद्धार किया और उसी मन्दिस्में लगवा दिया है। इस तीर्थके इलाके में कुछ गांव थे जिसकी आमदनी भंडारमें नहीं आती थी, सो आपके अथक परिश्रम और प्रयत्नसे आने लगी है। आपने पावापुरीमें दोन-हीनोंके लिये एक 'दीन शाला' बनवा दी है जो विशेष उपयोगो है। तीर्थ राजगृहके विपुलाचल पर्वत पर जो श्री पार्श्वनाथजीका प्राचीन मन्दिर है, उसकी सं० १९१२ की गद्यपद्यबन्ध प्रशस्ति के विशाल शिलालेखका आपने बड़ी खोजसे पता लगाया था। वह शिलालेख अभी राजगृहमें आपके मकान 'शान्तिभवन' में है। इस तीर्थके लिये श्वेताम्बरियों और दिगम्बरियों के बीच मामला छिड़ा था। उसमें विशेषज्ञोंकी हैसियतसे आपने गवाही दो थी और आपसे महीनोंतक जिरह की गयी थी। इसमें आपके जैन इतिहास और शालके ज्ञान, आपकी गम्भीर गवेषणा और स्मृति-शक्तिका जो परिचय मिला, वह वास्तवमें अद्भुत था। पश्चात् दोनों सम्प्रदायोंमें समझौता हो गया। उसमें भी आप ही का हाथ था। आपने पटना ( पाटलिपुत्र ) के मन्दिरके जीर्णोद्धारमें मच्छी रकम प्रदान की थी। ओसियां (मारवाड़) के मन्दिरमें जो ओसवालोंके लिये तीर्थ रूप है, डूंगरी पर जो चरण थे, उनपर मापने पत्थर की सुन्दर छतरी बनवाई थी।' तीर्थ-सेवाके साथ साथ आपने बरावर अपनेको समाज-सेषामें भो तत्पर रखा। आप समाज-सेवाकी हृदयसे कामना रखते थे और घोषणा द्वारा अपनेको दिखानेकी आपने कभी बेष्टा नहीं की। शांतिपूर्वक सेवा करना ही आपका ध्येय था। आप समाज सुधारमें पूर्ण विश्वास रखते थे और प्रबल समाज-सुधारक थे। आपने अपने यहां के विवाह प्रभृति सामाजिक कार्यों में बहुत सुधार किये, जिसके कारण आपसे आपके गांवके लोग विरोधी हो गये थे परन्तु मापने किसीकी कुछ पर्वाह न की और दिन-ब-दिन सुधारके लिये मप्रसर ही होते गये। भाप किसीके ऊपर बल देकर सुधार करानेके विरोधी थे।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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