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सोसाइटी, बंगीय साहित्य परिषद्, भंडारफर ओरियन्टल इन्सीट्यूट, नागरी प्रचारणी सभा आदि संस्थाओंके सदस्य थे। बहुत दिनोंतक मुर्शिदाबाद के तथा लालबाग कोर्टके औनररी मैजिस्ट्रेट, अजीमगंज म्युनिस्पैलिटीके कमिश्नर तथा मुर्शिदाबाद डिस्ट्रिक बोर्ड के सदस्य एवं एडवर्ड कोरोनेशन स्कूलके सेक्रेटरी भी थे। आप आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेन्टके औनररी कोरेस्पोन्डेन्ट तथा भंडारकर इन्स्टीट्यूट, पूना; जैन श्वेताम्बर एज्यूकेशन बोर्ड, बम्बई; राममोहन लाइब्रेरी, कलकत्ता तथा जैन साहित्य संशोधक समाज, पूमा, के आजीवन सदस्य थे।
बाल्यावस्थासे ही आपको भ्रमणका बहुत शौफ था और आपने प्रायः समस्त प्रसिद्ध जैनतीर्थोंकी यात्रा भी की थी। यात्राके साथसाथ आप पुरानी वस्तुओंका तथा तीर्थों में मूर्तियों पर के लेखों आदिका संग्रह करते रहते थे। मृत्युके कुछ दिन पूर्व ही आप दक्षिण भारतके प्रसिद्ध स्थानों तथा शत्रुजय आदि गुजरात प्रान्तके और राजपूतानाके तीर्थों की यात्रा कर लौटे थे।
जैन समाजमें आप एक उच्चकोटिके विद्वान थे। आपका इति. हास पुरातत्व सम्बन्धी शौक बहुत बढ़ा चढ़ा था। प्राचीन जैन इतिहासकी खोजमें आपने बहुत कष्ट सहा और धन भी बहुत खचं किया। आपने जो जैन-लेख संग्रह' तीन भाग, 'पाषापुरी तीर्थका प्राचीन इतिहास', 'एपिटोम आफ जैनिज्म' तथा 'प्राकृत सूत्र रत्नमाला' आदि ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं वे ऐतिहासिक दृष्टिसे बहुत महत्वपूर्ण और नवीन अनुसन्धानोंसे पूर्ण हैं। ___ 'आपको विद्वता पर ओसवालोंको नाज था तथा आपकी तीर्थ सेवाओंपर श्वेताम्बर जैनियोंको घमंड था।' आपने श्री महावीर स्वामीकी निर्वाण भूमि 'पावापुरी' तीर्थ तथा 'राजगृह' तीर्थक विषयमें समय, शक्ति और अर्थसे अमूल्य सेवा की है। पावापुरी तीर्थ के वर्तमान मन्दिर , जो सम्राट शाहजहांके राजस्वकालमें सं० १९९८ में बना था, उस समयकी मन्दिर-प्रशस्ति, जिसके अस्तित्वतकका पता न
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