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________________ *प्रबन्धावली. *१७६. सजनों ! मेरा हर्ष सोमासे बाहर हो जाता है जब कि मैं आपको इस 'कुमारसिंह हाल' में एकत्र देखता हूं। इसे हमारे स्वर्गीय पिताजीने हमारे परम प्रिय कनिष्ट भ्राताके स्मारकमें स्थापित किया था। इस भवनके ऊपर श्री आदिदेव भगवानकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा करवाकर उन्होंने इस मन्दिरका महत्व और भी बढ़ा दिया। स्वर्गीया ज्या माताजीके स्मारकमें इस तुच्छ सेवकने एक पुस्तकालय प्राचीन मूर्तियों तथा वित्रोंका एक संग्रहालय स्थापित किया है। इस संग्रहके विषय में मैं कुछ कहना नहीं चाहता। आप जैसे देश विदेशों के गुणियों, पारखियों तथा कलावन्तोंने अपनी अमूल्य सम्मनियां प्रदान कर मेरा उत्साह बढ़ाया है। भारत के प्राण महात्मा गांधी, पं. जवा. हर लाल नेहरु आदि इस स्थानको पवित्र कर चुके हैं। इस हालको आप भी पवित्र कर रहे हैं इससे मेरा उत्साह कई गुना बढ़ गया। सबों! हम सब लोगोंके लिये आज एक सुअवसर उपस्थित हुआ। यह शुभ सम्बाद हम सब लोगोंको विसे ग्कर आह्लाद कर है कि अखिल भारतवर्षीय हिन्दी पाहित्य सम्मेलनके बीसवें अधि. वेरा मनोनीत समारति हिन्दोके महाकवि और अपूर्व विद्वान श्री जगनाय दासजी रत्राका हमारे बीवो पधारे है। सबसे अधिक हका विम तो हमारे लिए यह है कि इस 'कुपार सिंह हाल' में आपका स्वागत करने का यह पहला सुप्रासर इस सुयोगले हमें दे दिया। उपस्थित कला मर्मज्ञ सजनों ! भारतीय चित्र तथा स्थापस्य कला. प्राचीन सिके, हस्तलिखित ग्रंथ आदिमें इधर भारत भरमें राष्ट्रीय जागृषिके कारण हमलो। अधिक ध्यान देने लगे हैं यह देशके सौभाग्य का विषय है। मुझे वह समय परण है :जब कुछ इने गिने विद्वान ही इस क्षेत्रमें काम करने उतरे थे। उस समय आपका प्रस्तुन सेवक इस कार्यमें अपनी शक्तिभर लगा हुआ था। उसका थोड़ा बहुत फल आप इस प्रदर्शनी में भी देखेंगे। सजनों, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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