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कलकत्ते में कला प्रदर्शनी
कलाचार्य ठाकुर महोदय तथा साहित्य और कला प्रेमी मित्रों और सजनों!
आप
यह मेरे लिये बड़े ही सौभाग्य तथा गर्व की बात है कि आज आपका इस स्थानपर स्वागत करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। आप सब सजनों का कला स्थापत्य यत्नतत्व आदि विषयोंके पारंगत विद्वान हैं इस भवनमें एकत्रित देख कर मेरे हृदयमें आनन्द की जो बाढ़ आ रही हैं उसे शब्दों में आप के सन्मुख रख सकू यह शक्ति मेरे में नहीं है। आचार्य महोदय तथा सजनो! जब हिन्दी साहित्य-सम्मेलनकी ओरसे पं० गांगेय नरोत्तम शास्त्रीने मुझे उसके खोले जानेवाली प्रद. शनीका भार देनेका प्रस्ताव किया था उस समय मैं अपने कंधोंपर उठा सकनेका बल नहीं पा रहा था किन्तु इच्छा सदा यही रही कि यदि मैं हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा विद्वान-जनताकी सेवाकर सकता तो यह मेरा परम सौभाग्य होता। अनिच्छासे अस्वीकार करनेपर भी शास्त्रीजी महोदय तथा मित्रोंके आग्रहने मुझे लाचार कर दिया कि अपने में पूरी शक्ति न देखते हुए भी उनका आज्ञा शिरोधार्य करू। वृद्धावस्थामें ज्ञान की तृष्णा तो बढ़ती जाती है किन्तु शरीर पूरी सहा. यता नहीं देता कि उसको बुझानेका समुचित उद्योग हो सके। इसीलिये मैं अपने उन मित्रोंका तथा प्रदर्शनी समितिके सदस्योंका सदा ऋणी रहूंगा जिन्होंने अपने अनुभव तथा दैहिक बलसे मेरी मनोकामनाको पूर्ण करने में कोई कोर कसर बाकी न रखो।
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