________________
* प्रबन्धावली.
लोग गवर्नर साहब के पास दौड़े। वे भी कुछ न कर सके और प्रश्न पोर्ट कमिश्नर पर छोड़ दिया। सूरतनिवासी स्वर्गीय सेठ गुलावचन्द देववन्द आदि नेताओं के प्रयत्न करने पर पोर्ट कमिश्नर साहबने, इस शर्तपर कि भविष्य में अग्नि-संस्कार के स्थान पर कोई स्मृति-चिह न बने, वहां शव-दाह की आज्ञा दे दी। चिताग्नि धधक धधक कर जलने लगी। स्त्रो, पुरुष, छोटे, बड़े लाखों के नेत्रों के सन्मुख उस पुरुषरत्न का भौतिक शरीर भस्मीभूत होकर सदा के लिये अनन्ताकाश में विलीन हो गया। इस प्रकार यह पवित्र स्मृति मेरे अन्तस्थल में सर्वदा के लिये अवल हो गई है। हाय! वैसे पुरुष क्या दुनिया को फिर कभी नसीब होंगे? काल किसी को नहीं छोड़ता! विधि का विधान ही बिवित्र है !!
'लोकमान्य'-दिवाली विशेषांक, २१ अक्तूबर १९३०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com