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श्रीयोसवाल उत्पत्ति-पत्र
अपने प्राचीन आवार्य और विद्वान् लोग यद्यपि बहुत से ऐति. हासिक रचनादि और नाना प्रकार के साहित्य का पूरा फण्ड रख गये हैं, परन्तु वे अपने उपदेश द्वारा अन्य मतियों को जैनी बनाने का कोई विशेष इतिहास नहीं छोड़ गये हैं। कुलभाट और चारणों के पास जो विवरण मिलते हैं वे अधिकतया कल्पित और अयुक्ति पूर्ण होते हैं। इस हेतु ऐतिहासिक दृष्टि से उनका स्थान उच्च नहीं है। श्री वोर परमात्मा के निर्वाण के पश्चात् भी बहुत से राजा महाराजादि उच्च कोटि के मनुष्यों की जैन धर्मपर अपूर्व श्रद्धा का उल्लेख मिलता है और इन लोगों के समय समय पर अपने पैतृक धर्म को त्याग जैन धर्म अङ्गीकार करने के दृष्टान्त जैन ग्रन्थोंमें बहुधा दृष्टिगोचर होते हैं। राजपूत क्षत्रियों से जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करके एक समय में ही कई गजपूत वंश के लोगोंने अहिंसा धर्म मानकर एक नवीन समाज की स्थापना की थी परन्तु खेद है कि इस घटना का कोई भी प्रमाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। पश्चात् इसी प्रकार वैदिक धर्म माननेवाले बहुत से उच्च वर्ग के लोग जैनाचार्यों द्वारा प्रतिबोधित होते हुये समय २पर जैन धर्म स्वीकार करके समाज में मिलते गये। हर्षका विषय है कि उक्त समाज का गौरव अद्यावधि जैन समाज में प्रधान रूपसे माना जाता है।
मोसवाल जाति की उत्पत्ति के विषय में कई पुस्तके मोर लेख आदि प्रकाशित हुये हैं जिनका सारांश यह ज्ञात होता है कि-श्री पार्श्वनाथ भगवान के पाट में श्री रमपम सूरिजी हुये थे। उन्होंने
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