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________________ * १४६ * * प्रबन्धावली * बि० सं० २२२ में ओसीया ( उपकेश ) नगर के राजा उपलदेव जो कि पेंवार राजपूत जाति के थे उनको सह कुटुम्व और समस्त नगरवासी राजपूतों के साथ जैन बनाने पर वे ही ओसवाल संज्ञा से ख्यात हुये । इस घटना के पश्चात् भी इसी प्रकार राजपूत आदि कौम जैनाचार्यों के उपदेश से जैन धर्म में दीक्षित होतो गई और उन लोगोंको उस समय अबाधा से समाज में स्थान मिलता गया । वीर निर्वाण के ७० वर्ष में ओसवाल समाज की सृष्टि की किंवदन्ति असम्भव सी प्रतीत होती है । श्री पार्श्वनाथ भगवान् के छट्ठे पाट के श्री रत्नप्रभ सूरि द्वारा ओस वंश की स्थापना की कथा भी विश्वसनीय नहीं है 1 ऐसी दशा में ओसवाल समाज की उत्पत्ति का इतिहास अपूर्ण सा ही है और इस विषय में खोज की आवश्यकता है । मेरे संग्रह में ओसवाल जाति की उत्पत्ति के विषय में एक प्राचीन कवित्त का अपूर्ण पत्र है जो यहां प्रकाशित किया जाता है। यदि किसी पाठक के पास इस कवित्त का पूरा पाठ हो तो आशा है कि वे महाशय उसे प्रकट करेंगे सम्भव है कि उक्त अंशका शेष भाग मिलने से ओसवाल समाज के इतिहास में और भी प्रकाश पड़ेगा । ( दोहा ) श्री सुरसती देज्यो मुदा, आसे बहुत विशाल । नासै सब संकट परो, उत्पत्ति कहूं उसवाल ॥ १ ॥ देश किसे किण नगर में, जात हुई छै एह । सुगुरु धरम सिखावियो, कहिस्यु अब ससनेह ॥ २ ॥ ( छन्द ) पुर सुन्दर धाम वसै सकलं, किरन्यावत पावस होय भलं । चऊटा चउराशि विराज खरे, पग मेलय जोर सुग्यान धरै 11 भिन माल करें नित राजपरं, भल भीम नरेंद उपंति वरं । पटराणी के दोय सुतन्न भरं, सुर सुन्दर ऊपल मत्त धरं ॥ २ ॥ अलका नगरी जिह रीत खरी, अठवीस बबाकरीसोभ धरी । तस नारी वसै बहु सुःख करी, दुख जाब न पासै सुदूर टरी ॥ ३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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