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________________ * १३८ * * प्रबन्धावली * असंभव को संभव बना सकता है । इसी कारण मैं प्रथम ही कह चुका हूं कि हमारे जेन शास्त्रों में समय को : बहुत उच्च स्थान दिया गया है । चाहे पुरातत्व देखिये चाहे नव्य इतिहास अबलोकन कीजिये आपको प्रत्येक में समय का झलकता हुआ चित्र दिखाई पड़ेगा । इसलिये जो व्यर्थ कार्यों में अपने समय, शक्ति और अर्थ व्यय करते हैं वे बड़ी भूल करते हैं। आज हमारे देशमें किस वस्तु की विशेष आवश्यकता है, आज हमें कैसी शिक्षा दी जानी चाहिये, आज किस ढङ्ग के व्यापार से द्रव्योपार्जन कर सकते हैं, आज किस विधि से हम धर्म पालन कर सकते हैं इत्यादि विचार यदि समयानुकूल न होंगे तो हमारी समस्त शक्ति नष्ट होगी । अतएव हमारे नवयुवकों का प्रथम कर्त्तव्य यही है कि समय के महत्व को अपने अन्तः करण में सदा स्मरण रखें । एक समय था कि हमारे ओसवाल भाइयों के द्वार पर वृटिश सरकार के प्रतिनिधि साक्षात् करने के लिये अपेक्षा किया करते थे और आज एक समय है कि उसी सरकार की आधीनता में ओसवाल भाइयों का स्थान भारतीय अन्य कौमों के बहुत पीछे है । यदि मनुष्य समय का ज्ञान सम्यक् प्रकार उपलब्ध करके यथासमय कर्मक्षेत्र में अग्रसर होवे तो असम्भव को भी अनायास से प्राप्त करने को समर्थ हो सकता है । एक समय था जब कि मुसलमानों के अत्याचारों के कारण हिन्दू ललनाओं के मान मर्यादा की रक्षा करनी कठिन हो गई थी । स्त्री शिक्षाके विषय में तो कहना ही क्या, बालिकाओं को अन्तःपुर से बाहर भेजना भी संकटपूर्ण था । आज एक समय है कि प्रत्येक समाज में स्त्री शिक्षा अत्यावश्यक समझी जाती है। यदि समय की अज्ञानता के कारण इससे पूर्ण लाभ न उठा सकें तो समय परिवर्तन होनेपर जो कुछ त्रुटियां रह जांयगी वे कदापि पूर्ण न हो सकेंगी और सदाकाल के लिये हानिकारक तथा कष्टदायक हो जायगी । अतः विशेष रूप से हमारे युवकों को उचित है कि संसार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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