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समय पुरुष बलवान
एक प्रबल पराक्रांत विजयी सम्राट् की तरह समय सदाकाल अपना आधिपत्य विस्तार कर रहा है। यह किसी का दास नहीं हैं। जगत के सर्वस्थानों के सर्व जीवों पर इसका शासन अखण्ड विद्यमान है । चाहे तीर्थंकर, चक्रवर्ती, शिशु चाहे युवक कोई भी क्यों न हों, समय की गति के अवोध्य करने को कोई समर्थ नहीं। समय ही एक अनादि अनन्त ऐसा पदार्थ है जिसका स्थान जैनियों के शास्त्र में विलक्षण रूप से वर्णित है। जैनागम के स्थान २ पर तेणं कालेणम् तेणं समयेणम्' का उल्लेख मिलता है। जो विषय स्वप्न के अगोचर था वह समय के ही कारण प्रत्यक्ष रूप से दृष्टि के सम्मुख मूर्त्तिमान उपस्थित है। यदि संसार में कोई भी अमूल्य और अतुलनीय पदार्थ का ज्ञान सर्वोत्कृष्ट समझा जाय तो समय का नाम ही सर्वप्रथम रहेगा । काल की अज्ञानता के कारण ही मनुष्य को समय २ पर हताश होना पड़ता हैं । समय का पूर्ण रूप से महत्व जानने के पश्चात् कार्य में अग्रसर होने से ईप्सित फल मिलने में सन्देह नहीं रहता । आज यदि हमारे नवयुवक भाई समयानुकूल अपना संगठन, विद्याभ्यास और व्यापारिक चर्चा में तत्पर रहें, गुरुजन समयानुकूल देशोन्नति, समाजोन्नति पर ध्यान दें और धर्माचार्य साधुलोग समयानुकूल धर्मोन्नति के पथ-प्रदर्शक बनें तो आज हम भारत के और २ समाजों के साथ ही नहीं वरं उनसे भी कहीं आगे बढ़ सकते हैं। यदि लकीर के फकीर होकर सदा समय के मूल्य को तुच्छ ही समझते रहेंगे तो हमलोग धार्मिक, व्यापारिक, अथवा सांसारिक किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर सकेंगे। एक समय में ही इतनी शक्ति है बो
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