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________________ * १३६ * * प्रबन्धावली * ___ मैं पुरातत्व विषय के खोज में जो कुछ संग्रह कर सका हूं उसमें हमारे इस "जैसवाल जैन" के विषय में दिल्ली में नवघरे के मन्दिर में एक सर्व धातु की प्रतिमा पर सं० १५०४ का लेख पाया है जिसमें इस प्रकार लिखा है :___ सं० १५०४ वर्ष आ० सु० ६ श्री मूलसंघे भ० श्रीजिनचन्द्र देवाः जैसवालान्वये सा० लर भार्या रैनसिरि तत्पुत्र सोनिग भार्या प्रेमा प्रणमति ।” (१) ___ और पटने (पाटलिपुत्र ) के जैन मन्दिर में सं० १६१० का निम्न लिखित लेख पाषाण को मूर्ति पर मौजूद है :___ “श्री सं० १६१० शाके १७७५ साल मिती वैशाख शुक्ल पञ्चम्यां गुगै पाटली-पुरसर जिनालय पूर्वक श्री श्री नेमनाथ मन्दिरजी जैसवाल माणकचन्द तत्पुत्र मटरूमल तत्पुत्र सीवनलाल प्रतिष्ठा कारायितु श्रीरस्तु ॥” (२) __इस से यह बात निश्चित है कि "जैसवाल" यह नाम कुछ नया नहीं है। साढ़े चार सौ वर्ष से भी अधिक समय से इसका अस्तित्व पाया जाता है और दिगम्बरी आचार्योंने ही जहां तक सम्भव है इन लोगों को प्रतिबोधित किया है। मैंने अन्दाज दो हजार जैन लेख संग्रह किया है तिस में उपरोक्त केवल दो लेखों के और कोई जैसवालों के प्रतिष्ठित प्रतिमा अथवा शिलालेख नहीं पाया। इस से यह भी सिद्ध होता है कि उनकी संख्या अधिक नहीं थी। चारण और भाटों के पास जो वंशावली मिलती है उसमें अधिकांश ओसवालों का ही वर्णन मिलता है और उन लोगोंको क्षत्रिय राजपूत से जैनी होनेका संतोषदायक प्रमाण भी मिलता है। उपर्युक्त दो एक विचारों से जैसवालों की उत्पत्ति का आगे पर खोज करने के प्रबन्ध में थोड़ा भो सहारा पहुंचेगा तो मैं अपना प्रयास सफल समगा। (१) जैन लेख संग्रह, प्रथम खण्ड पृ० ११२ नं० ४७२ । (२) जैन लेख संग्रह, प्रथम खण्ड पू० ८२ नं० ३२८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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