SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जगवान पार्श्वनाथ आज से प्रायः २८०० वर्ष पूर्व इतिहास प्रसिद्ध पवित्र बनारस नगरी में इक्ष्वाकु वंशीय अश्वसेन राजा की महिषी रानी वामादेवी के गर्भ से पौषमास कृष्णपक्ष की दसमी तिथि को आधीरात के समय जैनियों के तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ जन्म ग्रहण किया था। युवावस्था प्राप्त होने पर कुशस्थलाधिपति राजा प्रसेनजित की कन्या प्रभावती के साथ उनका विवाह हुआ। भगवान् पार्श्वनाथ तीस वर्ष की अवस्था तक गृहस्थाश्रम में रहने के बाद सर्व परिग्रह परित्याग करके दीक्षा ग्रहण करके घोर तपस्या में लग गये। उन्होंने केवल ८३ दिन तक तपस्या की। इस तपस्या काल में दैविक, भौतिक और मानुषिक आदि नाना प्रकार के उपसर्गों के उपस्थित होनेपर भी धे ध्यानसे विचलित नहीं हुये। ८३ वें दिन के अन्तमें उनको लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान प्राप्त हुआ, इसी जीवनमुक्त कैवल्यावस्था में १० वर्ष तक तीर्थंकर रूपसे धर्म प्रचार करते हुये ७१७ खष्ट पूर्व १०० वर्ष की अवस्था में श्रावण शुक्ला अष्टमी तिथि को उन्होंने परम निर्वाण लाभ किया। यही भगवान् पार्श्वनाथ की संक्षिप्त जीवनो है। १६ वीं शताब्दी तक इतिहास वेत्ता गण भगवान् पार्श्वनाथ को पौराणिक अथवा काल्पनिक व्यक्ति समझते थे। परन्तु वर्तमान कालमें प्राचीन जैन और बौद्ध ग्रन्थों के अन्वेषण के फलस्वरूप इस धारणा में परिवर्तन हुआ हैं और पार्श्वनाथ ऐतिहासिक युग के व्यक्ति माने जाने लगे हैं। इस समय प्रो० जैकोबी, वीन्सेण्ट स्मिथ, डा. गोंएरीनों, डा. ग्लसेनप इत्यादि पाश्चात्य विकानोंके सतसे अन्तिम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy