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प्रबन्धाबली
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श्वेताम्बर चाहे दिगम्बर, चाहे स्थानकवासी चाहे तेरहपन्थी कोई भी हो जैनी नाम धारक समस्त जैनाचार्यों को और जैन धर्मोपदेशकों को नम्र निवेदन है कि धार्मिक मतभेद रूप अग्निकुण्ड जिसमें जैन समाज की तरह और और समाज भी भस्म हो रहे हैं, इस विषय पर गंभीर विचार करें और शीघ्र ही समयानुकूल उपाय निकाल कर समस्त डोन जाति और समाज की रक्षा करें।
"श्वेताम्बर जैन" ६ अगस्त १६३१ ( भाग ६ संख्या ३५, पृ० ७ )
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