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* प्रबन्धावली *
सुधर्मस्वामिके चरण श्वेताम्बरी सम्प्रदाय की ओरसे प्रतिष्ठित हैं । दिगम्बरी लोग भी सेवा पूजा करते हैं। बड़े ही दुःखके साथ लिखना पड़ता है कि ऐसे तोर्थस्थान में भी अशांति चल रहा है । शताब्दियों से इस तीर्थ का कुल प्रबन्धादि श्व ेताम्बर सम्प्रदाय की ओरसे ही होता चला आ रहा है; परन्तु खेद है कि मतभेद और कलह बढ़ाने के अभिप्राय से ही दिगम्बरी लोगोंने कुछ दिनोंसे और और तीर्थों की तरह यहां पर भी मुकदमा किया है जिसका फैसला पटना सबजज कोट से हाल ही में हो चुका है । समय, शक्ति और अर्थव्यय के अतिरिक्त इस से कोई लाभ नहीं होता । धार्मिक और सामाजिक विषयों का अंत मुकद्दमाबाजी से कदापि नहीं हो सकता है। हजारों रुपये स्वाहा करके अंत में स्थिर होकर बैठना ही पड़ता है । यदि ये द्रव्य स्वार्थान्ध होकर मुकद्दमे वगैरह में न खर्च किया जाय और ऐसे ऐसे अपव्यय का दूसरा २ सदुपयोग हो तो देशवासियों को इससे कितना लाभ हो ? अभी देश में कितनी अच्छी संस्थायें तथा कितने आवश्यक सर्व साधारण उपकारार्थ कार्य है जो अर्थ के अभाव में शिथिल पड़े हैं, लेकिन इस ओर कोई भी ध्यान नहीं देते ।
'श्रीपात्रापुरी ग्राम में जो मंदिर है वह भी बहुत भव्य बना हुआ है । दिगम्बर सम्प्रदाय वाले उस स्थान को अवश्य पवित्र नहीं मानते परन्तु श्व ेताम्बरी लोग भगवान महावीर का वहीं निर्वाण स्थान कहते हैं और उसी मंदिर में भगवान की मूर्त्ति और चरणों की सेवा पूजा करते हैं। यहां महावीर स्वामी के गौतम आदि १८ प्रधान शिष्यों के चरण भी प्रतिष्ठित हैं । प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि शाहजहां बादशाह के समय में बिहार निवासी मथियान श्वेताम्बर श्रीसंघ की ओरसे वर्तमान मंदिर की प्रतिष्ठा सं० १६६८ में हुई थी। यहां पर यात्रियों के ठहरने का अच्छा इन्तजाम है और बिहार निवासी बाबू धन्नूलालजी सुनंती, जमींदार श्वेताम्बर श्रीसंघ की ओरसे देख रेख करते हैं ।
'स्वाधीनभारत' ( दिवाली का साधारण अंक, मंगलवार २१ अक्तूवर
१६३०; भाग २ अंक ८१ )
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