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________________ जैन धर्म पर विद्वानों के चम आज पाठकों के सन्मुख जिन महत्वपूर्ण उद्देश्यों को लेकर यह संघजान पत्रिका उपस्थित हुई है उनमें से एक उद्देश्य जैनधर्म के विषय में फैले हुए भ्रममूलक विचारों को दूर करना भी है, यह चेष्टा सर्वथा प्रशंसनीय है। इस पवित्र धर्म और इसके तत्त्वोंके सम्बन्धमें जो भ्रमात्मक विचार अजेनों में फैले हुए हैं उनका समाधान करना हमारा प्रधान कर्तव्य है। पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भारत के विभिन्न धर्म और समाज पर जितने गवेषणापूर्ण निबन्ध और पुस्तकें प्रकाशित हातो गई उन सभों के उल्लेख को यहां आवश्यकता नहीं है परन्तु उन में भ्रमपूर्ण विषयों के समावेश के कारण फलस्वरूप अद्यावधि जो कुछ भ्रम देखने में आते हैं, उन पर ही २-१ शब्द लिखने का साहस किया है। यदि मेरे प्रयास से तनिक भी उद्देश्य की सफलता हुई नो मैं अपने को कृतकृत्य समझूगा। देखिये! हाल में हो भारतीय रेलवे पब्लिसिटी व्युरो से भारत और ब्रह्मदेश' ( India anl Burma ) भ्रमण के लिये एक हैण्डबुक प्रकाशित हुई है जिस के आठवें परिच्छेद पृ० ८३ में विभिन्न धर्मों की वर्णना करते हुए जैनधर्म पर इस प्रकार लिखते हैं कि जैनधर्म के जन्म. दाता महावीर जिन के धर्मोपदेश बौद्धधर्म से मिलते जुलते थे, बुद्धदेव के समकालीन थे। देखिये ! वर्षों होने चले कि कई बड़े२ विद्वानों ने पूर्णरूप से ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध कर के जैनधर्म को • अति प्राचीन बतलाते हुए बौद्धधर्म के शताब्दियों पहले से ही इस का भस्तित्व खोकार किया है। भतः भाज पुनः यह भ्रम हमाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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