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________________ पावापुरी का जल मन्दिर आप श्री पावापुरी का नाम अवश्य सुने होंगे। यहां का जलमन्दिर बहुत रमणीय है । यहां का न केवल दृश्य ही मनोहर है वरन इसी स्थानमें जैनियों के अन्तिम तीर्थंकर श्रीमहावीर स्वामी का निर्वाण होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है। आज से २४५७ वर्ष पहले पावापुरी ग्राम में भगवान महावीर का मोक्ष हुआ था और ग्राम के बहिर्भाग में जहाँ उनके भौतिक देह का अग्नि संस्कार हुआ था वहां मंदिर 'जलमंदिर' के नाम से प्रसिद्ध है । श्वेताम्बरी शास्त्रका कथन है कि जहां महावीर तीर्थकर का अग्निसंस्कार हुआ था उस स्थान को पवित्र समझ कर देवता मनुष्यादि उस समय जितने उपस्थित हुये थे वहांको मिट्टो और भस्म उठा ले गये थे और इसीसे वहां गढा हो गया था । पश्चात् अन्य जो लोग वहां गये वे सब भी वहां का थोड़ा २ मिट्टी ले गये और वह गढ़ा क्रमशः तालाव सा हो गया । कार्त्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रिको भगवान का निर्वाण होनेके कारण इस दिवाली पर यहां भारत के नाना स्थान से श्व ताम्बरी और दिगम्बरी दोनों सम्प्रदाय के जैनी लोग आज भी सैकड़ों हजारों की संख्या में आते हैं । उस समय यहां की शोभा देखने ही योग्य होती है । यह स्थान पटना जिला के बिहारशरीफ शहर से दक्षिण और लगभग सात मीलपर स्थित है । वहां का तालाव भी जिसके बीच में वह जलमंदिर है बड़ा विस्तृत है। मंदिर में पहुंचने के लिये सुन्दर पत्थर का प्रायः दो सौ गज लम्बा एक पुल भी बना हुआ है। मंदिर में मकराने की तीन वेदियों में महावीर भगवान और उनके प्रथम शिष्य गणधर गौतम तथा पांचवें शिष्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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