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________________ ( ६ ) भाषा हर कोई नहीं लिख सकता । प्रस्तुत पुस्तक के प्रबन्धों से उनकी निष्पक्षता भी पूर्ण से मालूम होती है। वे किसी भी बात के विरोध में उस समय तक नहीं पड़ते थे, जब तक कि उस विषय की पूरी छानबीन न कर लेते थे । 'कूएं भांग' शीर्षक उनका प्रबन्ध इस बारे में पठनीय है। 'धार्मिक उदारता', 'वर्तमान समस्या' और 'श्वेताम्बर' दिगम्बर सम्प्रदायों की प्राचीनता' आदि प्रबन्ध इस बात के द्योतक हैं। जैन साहित्य को उत्तम से उत्तम रूप में प्रकाश में लाने की उनकी अतृप्त आकांक्षा थी। वे केवल प्रन्थों का येन केन प्रकारेण प्रकाशन कराना ही अलम् नहीं समझते थे, प्रत्यों के निर्वाचन, सम्पादन और प्रकाशन के विषय में भी उनकी भव्य कल्पनाएं थीं। उन्होंने लिखा है____ "कोई प्रन्थ क्यों न हो, उसका गौरव उसके कर्ता के हाथ से निकलने पर जो था, उतना ही नहीं, परन्तु उससे कई गुना अधिक बनाये रखने के लिये हमें आवश्यक है कि हम उन्हें सुपात्र उत्तराधिकारी की तरह अच्छी प्रकार समालोचना और उपयुक्त टीका टिप्पणी के साथ बड़ी सावधानी के साथ प्रकाशित करें।.............."यदि पुस्तक शुद्ध ही नहीं हुई, पूरी छानबीन, जांच पड़ताल के साथ छापी ही न गई तो दूसरी गौण बातों पर कौन ध्यान देता है ?" वास्तव में, प्रन्थों के सम्पादन और प्रकाशन की यह बुराई अनेक प्रन्थों में दिखाई देती है। बिदेशों में जो संस्कृत आदि आर्य भाषाओं के प्रन्थ प्रकाशित होते हैं, उनमें शायद ही अशुद्धि रहती है, शायद ही उसमें कोई विषय छूटता है। इसका कारण यह है कि वहां के विद्वानों को प्रन्यों से सचा प्रेम होता है। वे उनके प्रणयन या सम्पादन में अपना जीवन भर भी लगा सकते हैं, लगा देते हैं। श्री नाहरजी इसी मादर्श के व्यक्ति थे-यथासाध्य उन्होंने इस बात को बराबर ध्यान में रखा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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