________________
* प्रबन्धावली *
प्रकार की भी उन्नति न हो सकी। अबुल फजल ने अपनो आईनी अकघरी नामक पुस्तक में लिखा है कि सम्राट अकबर के समय में बहुत चेष्टा करने पर भी जैनियों के इस नग्न यानो दिगम्बर सम्प्रदाय का कोई पता नहीं चला परन्तु इस समय अंग्रेज राजत्व काल में शान्तिमय युग में वे अपनी मर्यादा वृद्धि करने की चेष्टा कर रहे हैं।
इस प्रसंग में और भी एक बात का उल्लेख कर देना उचित होगा। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् पंचम संघनायक यशोभद्रजी ने सम्भूति विजय और भद्रबाहु नामक दो शिष्योंको रखकर स्वर्गारोहण किया। इनके पश्चात् आवार्य सम्भूतिविजय छठे और उनके गुरुभाई सातवें संघ नायकके पदपर अधिष्ठिन हुए। दिगम्बर लोगोंका कहना है कि उन्हींके समय सम्राट चन्द्रगुप्त के राजत्वकाल में १२ वर्षव्यापी भीषण अकाल पड़ा । उस समय अन्नाभावके कारण जैन साधुओं के लिये जीवन यापन करना कठिन हो गया, अतः भद्रबाहु स्वामी यह विकट स्थिति देख बहुत साधुओं के साथ पाटलीपुत्र (पटने) से दक्षिण दिशा में चले गये। दिगम्बरी लोग कहते हैं कि इसी समय सम्राट चन्द्रगुप्त ने भी भद्रबाहु स्वामो के साथ दक्षिण दिशा में प्रस्थान किया और जैन दीक्षा ग्रहण कर श्रवण बेलगोले के निकट पहाड़ की कन्दरा में तपस्याकर प्राण त्याग किया। आज भी यह स्थान चन्द्रगिरो के नाम से प्रख्यात है और यहां की शिलालिपि में इस घटना का वर्णन भी खुदा है, परन्तु किसी संघ के इतिहास अथवा श्वेताम्बर धर्म ग्रन्थों में इस प्रकार चन्द्रगुप्त के दक्षिण जाने और साधु होने का उल्लेख नहीं है। और भी जातक प्राचीन अजैन इतिहास देखने को मिलता है, उसमें मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्त की ही दक्षिणयात्रा अथवा दक्षिण दिशा में मृत्युका कहीं वर्णन नहीं मिला है। दिगम्बरो लोगोंद्वारा कथित और शिलालेख द्वारा प्रमाणित घटना की दो प्रकार से व्याख्या की जा सकती है। (१) यातो महाराज चन्द्रगुप्त का यह वृत्तान्त
सत्य घटनाओं के आधार पर खोदा गया होगा अथवा (२) चन्द्रगुप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com