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________________ * प्रचन्धावली और भद्रबाहु ये दोनों व्यक्ति मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त और श्रुतकेवली भद्रबाहु न होकर इसी नाम के दूसरे भद्रबाहु और कोई दूसरा चन्द्रगुप्त नामधारी राजा होंगे। इस दूसरी व्याख्या को ही आजकल के इतिहासवेत्ता ठीक मानते हैं। ___ उपयुक्त दुर्भिक्षकाल में अनेक जैन साधु दक्षिणदिशामें चले गये और वहां अपने अहिंसा के सिद्धान्त का प्रचार किया यह सर्वमान्य है। इतिहासमें इसके पर्याप्त प्रमाण हैं कि जैनधर्मप्रचारमें यहां उन्हें काफी सफलता भी मिली थी। उस समय धर्मोपदेशोंको पुस्तका. कारमें लिखनेकी आवश्यकता पड़ी। उत्तर भारतके सभी जैन साधुगणोंमें प्रसिद्ध मथुरा नगरी और सौराष्ट्र प्रान्तल बल्लभी नामक नगरी में एकत्रित होकर प्राचीन सूत्रादि और भगवान महावीर के उपदेशों का संग्रह कर लिपिबद्ध किया था। किन्तु दक्षिण प्रान्तीय साधुओं ने उत्तर प्रान्त के साधुओं की तरह न तो कहीं एकत्रित होकर प्रान्तीय मौलिक तत्व और इतिहासादि का संग्रह ही किया और न उत्तर भारत के साधुओं द्वारा संगृहोत सूत्रादि को हो प्रमा. णित माना, बल्कि उन लोगोंने स्वेच्छा पूर्वक अलग ही धर्मग्रन्थ और इतिहासादि की रचना कर डाली। उस समय के लिखे हुए धर्मग्रन्यादि ही वर्तमान दिगम्बर सम्प्रदायवाले जैनियों के प्राचीन धर्मग्रन्थ हैं। इतिहास और प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि इसी प्रकार क्रमशः जैन सम्प्रदाय में दो विभाग हुए और ईस्वी की पहिलो शताब्दो में श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दो विभिन्न सम्प्रदायों का नामकरण हुआ। उपर्युक्त सभी बातोंको भलीभांति मनन करने और ऊपर बतलाये प्रमाणों तथा दोनों संप्रदायों के मान्यग्रन्थों और इतिहासादि के अध्ययन के पश्चात् निरपेक्ष भाव से समालोचना करने से श्वेताम्बर सम्प्रदाय की सब प्रकार से प्राचीनता सिद्ध होती है। श्वेताम्बरी 15 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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