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•प्राधावली.
अवलोकन कर सकते हैं। यहां इतना ही बतलाना पर्याप्त होगा कि वर्तमान काल की गति अवसर्पिणी है, इस काल में प्रथम तीर्थंकर से लेकर महावीर तक कुल २४ तीर्थकर हो चुके हैं इनमें अन्तिम तीर्थंकर महाबोर स्वामीने ई० सन् से ५२७ वर्ष पूर्व निर्वाण लाभ किया था इनके पूर्ववतों तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथने महाबोरसे अढ़ाई सौ वर्ष पूर्व यानो ७७७ खष्ट पूर्व में निर्वाण प्राप्त किया था। आधुनिक विद्वानगण तीर्थंकर पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक युगके महापुरुष और इनके पूर्ववतों शेष २२ तीकरों को Prehistoric Perial अर्थात् ऐतिहासिक युगसे पूर्व का मानते हैं।
भगवान महावीर के समय में जैनधर्म किसी सम्प्रदाय में विभक्त नहीं था। उनके बाद भी कई शताब्दो नक इसके अविभक्त रहने के प्रमाण मिलते हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदायवालों के आवारांग सूत्रादि ४५ प्राचीन धर्म ग्रन्थ हैं और उन्हें वे लोग जैन सिद्धान्त कहते हैं, परन्तु दिगम्र सम्प्रदायवाले इन प्राचीन सूत्रादि को अमान्य करने हैं । दिगम्बगे लोग कहते हैं कि उक्त प्राचीन समस्त जैनागम नष्ट हो गये है। अतः वे लोग श्वेताम्बर सम्प्रदायवालों के मान्य आगमों को यथार्थ नहीं मानते थे। इन बातोंपर अच्छी तरह से विचार करने पर यह बतलानेकी आवश्यकता नहीं रह जातो कि प्राचीन जैन तत्व इतिहासादि के सम्बन्ध में दिगम्बर ग्रन्थों का उपादान श्वेताम्बर ग्रन्थों की अपेक्षा बहुन कम है। जैन दशनवित् ममम्न विद्वानोंने भी श्वेताम्बर प्रन्योंकी प्राचीनता मुक्त कंठसे स्वीकार को है। दिगम्बरियोंमें ऐसे प्राचीन अन्य उपलब्ध नहीं है।
सम्राट अशोकके समयमें जैन साधु निर्ग्रन्थ नामसे पुकारे जाते थे और उनके प्राचीन शिला लेख में इसी नामका उल्लेख भी है किन्तु निनन्य शब्दका नग्न साधु अर्थ करना उचित नहीं। निन्य शब्दका अर्थ यहा प्रन्थि रहित अर्थात गगह पादि बन्धन मुक्त साधु समझना होगा। सम्राट अशोकके बाद कलिङ्गाधिपति महाराज बालके नाम
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